________________ * उपशम श्रेणी की अपेक्षा द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि जीव के इस गुणस्थान में 6 प्रकृतियाँ असत्त्व योग्य हैं। वे अनंतानुबंधी 4, नरकायु, तिर्यञ्चायु हैं। * उपशम श्रेणी की अपेक्षा क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव के 9 प्रकृतियाँ असत्त्व योग्य हैं। वे 7+2 आयु हैं। * उपशम श्रेणी की अपेक्षा क्षपक श्रेणी का काल आधा होता है। * उपशम श्रेणी सम्बन्धी 10वें गुणस्थानवर्ती जीव उत्कृष्ट से 299 एवं जघन्य से , “एकादि हो सकते हैं। 11. उपशान्त कषाय गुणस्थान . इस गुणस्थान का पूर्ण नाम 'उवसंत कसाय वीयराय छदुमत्था' अर्थात् 'उपशान्त कषाय वीतराग छद्मस्थ' है। जिनकी कषाय उपशान्त (दमित/शान्त) हो गई है उन्हें उपशान्त कषाय कहते हैं। छद्म अर्थात् ज्ञानावरण और दर्शनावरण, उनमें जो रहते हैं उन्हें छदमस्थ कहते हैं। जिनका राग नष्ट हो गया है उन्हें वीतराग कहते हैं। जो उपशान्त कषाय होते हुए भी वीतराग छद्मस्थ होते हैं उन्हें उपशान्त कषाय वीतराग छद्मस्थ कहते हैं। इसमें आये हुए वीतराग विशेषण से दशम गुणस्थान तक के सराग-छमस्थों का निराकरण समझना चाहिये।' उपशान्त कषाय गुणस्थान को विशिष्ट प्रकार से प्रकाशित करते हुए आचार्य लिखते हैं कि - कसयाहलं जलं वा सरए सरवाणियं व णिम्मलयं। सयलोवसंत मोहो उवसंतकसाय होइ॥ अर्थात् कतकफल से सहित जल अथवा शरदकाल में सरोवर का पानी जिस प्रकार निर्मल होता है उसी प्रकार जिसका सम्पूर्ण मोहकर्म सर्वथा उपशान्त हो गया है, ऐसा उपशान्तकषाय गुणस्थानवी जीव अत्यन्त निर्मल परिणामवाला होता है। ध. 1/198 पं. सं. प्रा. 1/24, ध. 1/16, गा. 122, गो. जी. गा. 61, पं. स. सं. 1/47 167 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org