________________ उपशान्त मोह गुणस्थान की विशेषतायें * एक समय में उदय में आने वाले कर्मों के समूह को निषेक कहते हैं। * इस गुणस्थान का पूरा नाम उपशान्त मोह छदमस्थ वीतराग है। * जहाँ पर सम्पूर्ण मोहनीय कर्म का उपशम होने से वीतराग आ गई, परन्तु छद्मस्थ अवस्था है उसे उपशान्त मोह छद्मस्थ वीतराग कहते हैं। * इस गुणस्थान का जघन्य काल एक समय एवं उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है। * इस गुणस्थान वाला जीव नीचे गिरता ही है, गिरने के दो कारण हैं-काल क्षय, भव क्षय। गुणस्थान का समय पूर्ण होना काल क्षय, जीव की आयु पूर्ण होना भव क्षय है। काल क्षय से गिरने वाला जीव 10वें गुणस्थान को प्राप्त होता है तथा भवक्षय से गिरने वाला जीव चौथे गुणस्थान को प्राप्त होता है। * एक जीव की अपेक्षा इस गुणस्थान में पाँचों भाव सम्भव हैं। * द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि जीव एवं क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव दोनों ही उपशम श्रेणी माड़ सकते हैं। इस अपेक्षा से यहाँ पाँचों भाव घटित हो जाते हैं। * एक जीव एक भव में दो बार एवं संसार काल में चार बार प्राप्त हो सकता है। * एक जीव की अपेक्षा इस गुणस्थान का जघन्य विरह काल अन्तर्मुहुर्त है एवं उत्कृष्ट विरह काल कुछ कम अर्द्धपुद्गल परावर्तन प्रमाण है। * जो जीव 4 बार उपशम श्रेणी माड़ लेते हैं वे 132 सागर के अन्दर कभी भी क्षपक श्रेणी माड़कर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। * वज्र नाराच संहनन एवं नाराच संहनन का उदय इसी गुणस्थान तक होता है, आगे नहीं। * प्रारम्भ के तीन संहनन वाले जीव इस गुणस्थान में पाये जा सकते हैं। * इस गुणस्थान में मरण करने वाला जीव जघन्य से सौधर्म, ईशान स्वर्ग तक तथा उत्कृष्ट से सर्वार्थ सिद्धी तक उत्पन्न हो सकता है। 169 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org