________________ बदना। 4. द्रव्य में गुण का उपचार करना, जैसे - जीव, अजीव ज्ञेय अर्थात् ज्ञान के विषय हैं। 5. द्रव्य में पर्याय का उपचार करना, जैसे - एकप्रदेशी परमाणु को भी बहप्रदेशी कहना। 6. गुण में द्रव्य का उपचार करना, जैसे सफेद महल। यहाँ श्वेत गुण में महल द्रव्य का आरोप किया गया है। 7. गुण में पर्याय का उपचार करना, जैसे - पर्याय में परिणमन करने वाले की तरह ज्ञान गुण ही पर्याय है ऐसा कहना। 8. पर्याय में द्रव्य का उपचार करना, जैसे - स्कन्ध भी द्रव्य है ऐसा कहना। 9. पर्याय में गुण का उपचार करना, जैसे शरीर के आकार को देखकर कहना कि यह उत्तम रूप है। इस प्रकोर से ये असद्भूत व्यवहार नय के नौ विषय हैं। यहाँ एक बात विशेष जानने के लिये है कि उपचार पृथक् नय नहीं है इसीलिए उसको अलग से नय नहीं कहा है। मख्य के अभाव में प्रयोजनवश या निमित्तवशात् उपचार की प्रवृत्ति होती है। उपचार व्यवहारनय का भेद है। अध्यात्म नय आचार्य देवसेन स्वामी की विशेषता है कि उन्होंने नयों के विषय में अत्यधिक विस्तार से वर्णन किया है। सभी नयों का वर्णन करने के अन्त में उन्होंने अध्यात्मभाषा से भी नयों का वर्णन किया है। जो आध्यात्मिक ग्रन्थों में अवश्यमेव पाये जाते हैं। जैसे आचार्य कुन्दकुन्दस्वामी के समयसारादि में। अध्यात्मभाषा के नयों का वर्णन करते हुए लिखते हैं - नयों के मूल दो भेद हैं - एक निश्चय नय और दूसरा व्यवहार नय। उसमें निश्चय नय का विषय अभेद है और व्यवहार नय का विषय भेद है। अर्थात् गुण-गुणी में एवं पर्याय-पर्यायी आदि में भेद न करके जो भेद के द्वारा वस्तु को ग्रहण करता है वह व्यवहार नय है। इसमें ये विशेष है कि निश्चय नय का हेतु द्रव्यार्थिक नय और व्यवहार नय का हेतु पर्यायार्थिक नय है। उनमें से निश्चय नय के दो भेद हैं - शुद्ध निश्चय नय और अशुद्ध निश्चय नय। इनमें भी शुद्ध निश्चय नय का विषय शुद्ध द्रव्य है तथा अशुद्ध निश्चय नय का विषय अशद्ध द्रव्य है। जो नय कर्मजनित विकार से रहित गुण और गुणी को अभेद रूप से ग्रहण करता है, वह शुद्ध निश्चय नय कहलाता है। आ. प. सू. 215-216 91 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org