________________ * नाना जीवों की अपेक्षा इस गुणस्थान में 18 प्रकृतियों का अनुदय होता है। * कोई भी वज्रवृषभ नाराच संहनन वाला क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी जीव केवली एवं श्रुतकेवली के पादमूल में क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त कर सकता है। * अनादि मिथ्यादृष्टि जीव औपशमिक के साथ एवं सादि मिथ्यादृष्टि जीव औपशमिक, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के साथ चतुर्थ गुणस्थान प्राप्त करता है। * तृतीय गुणस्थानवी जीव क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के साथ ही चतुर्थ गुणस्थान को >> प्राप्त होता है। * पाँचवें एवं छठवें गुणस्थानवी जीव अप्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से चतुर्थ गुणस्थान को प्राप्त होता है। * पाँचवें एवं छठवें गुणस्थानवर्ती औपशमिक सम्यक्त्वी जीव उपशम सम्यक्त्व के साथ चतुर्थ गुणस्थान को प्राप्त नहीं होते हैं। * शुभोपयोग एवं धर्म्यध्यान का प्रारम्भ इसी चतुर्थ गुणस्थान से होता है। * कोई भी उपशम श्रेणी माडने वाला द्वितीयोपशम सम्यक्त्वी जीव यदि कालक्षय से ' गिरे तो क्रम से चतुर्थ गुणस्थान तक आ सकता है। * क्षायिक सम्यक्त्वी तिर्यञ्च भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं। * अविरत सम्यक्त्वी जीव 41 प्रकृतियों का बंध नहीं करता है, मिथ्यात्व सम्बन्धी 16 अनंतानुबन्धी 25 प्रकृतियाँ। * एकेन्द्रिय से लेकर असैनी पञ्चेन्द्रिय तक के जीव अपनी पर्याय में सम्यग्दर्शन की प्राप्ति नहीं कर सकते हैं। * सैनी पञ्चेन्द्रियों में क्षेत्रस्थ म्लेच्छों को छोड़कर समस्त जीव सम्यग्दर्शन प्राप्ति की योग्यता रखते हैं। * इस गुणस्थान का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट काल 33 सागर में एक समय कम + एकपूर्व कोटि में अन्तर्मुहूर्त कम है। * औपशमिक सम्यक्त्व का जघन्य एवं उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। 142 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org