________________ * यदि यह क्षायिक सम्यक्त्वी है तो इसकी सत्ता में 7 प्रकृति नहीं होती हैं। * यदि वह क्षायोपशामिक सम्यक्त्वी है तो इसकी सत्ता में 7 प्रकृतियाँ होती हैं, लेकिन उदय में सम्यक्त्व प्रकृति मात्र ही होती है। * यदि वह औपशमिक सम्यक्त्वी है तो उसके 7 प्रकृतियों का उपशम होता है। * नरक एवं देवगति में चार गुणस्थान ही होते हैं। * मनुष्य एवं तिर्यञ्च गति सम्बन्धी भोगभूमि एवं कुभोगभूमि में चार गुणस्थान तक . ही होते हैं। * सम्यग्दृष्टि देव एवं नारकी नियम से मनुष्य आयु का ही बंध करते हैं। * सम्यग्दृष्टि कुभोगभूमिज, भोगभूमिज सौधर्म ईशान सम्बन्धी स्वर्ग में उत्पन्न होते * छठवीं पृथ्वी तक के नारकी क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन के साथ वहाँ से निकल सकते हैं, परन्तु पहली पृथ्वी के नारकी क्षायिक सम्यक्त्व के साथ भी आते हैं। * प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन के साथ किसी भी गति के जीव का मरण नहीं होता है। * सामान्य क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि मनुष्य एवं तिर्यञ्च मरण करके मनुष्य और तिर्यञ्च नहीं हो सकते हैं। * सामान्य क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव नरक गति को प्राप्त नहीं होता है। * सामान्य क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव (मनुष्य एवं तिर्यञ्च) मरण कर नियम से वैमानिकों में ही जाते हैं। * कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि मनुष्य मरण करके चारों गतियों में उत्पन्न हो सकता है। विशेष यह है कि नरक में पहली पृथ्वी तक, तिर्यञ्च या मनुष्य में जावे तो भोगभूमि में, देवगति में वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है। . * तीर्थङ्कर प्रकृति का आस्रव को करे तो इस गुणस्थान से ही शुरु होता है। *क्षायोपशमिक एवं क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव ही तार्थङ्कर प्रकृति के आस्रव करने के अधिकारी हैं। 141 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org