________________ * इस गुणस्थान का उत्कृष्ट विरह काल पल्य का असंख्यातवां भाग प्रमाण एवं जघन्य विरह काल एक समय है। * एक जीव की अपेक्षा इस गुणस्थान में नवीन आयुबंध, मारणान्तिक समुद्घात एवं मरण सम्भव है। * इस गुणस्थान में मनुष्य गति का जीव मनुष्य एवं तिर्यञ्च आयु का ही बंध कर सकता है। सम्यग्दर्शन की आय का नष्ट होना आसादना है। * प्रथमोपशम या द्वितीयोपशम. सम्यग्दृष्टि जीव ही इस गुणस्थान को प्राप्त करते हैं अन्य कोई नहीं। * सासादन गुणस्थान गिरने की अपेक्षा से ही बनता है। * विग्रहगति में दूसरा गुणस्थान बदलकर पहला हो सकता है। * यतिवृषभाचार्यानुसार दूसरे गुणस्थान के प्रथम भाग में मरण करने वाला देवगति, द्वितीयभाग में मरण करने वाला जीव देवगति एवं मनुष्य गति, तृतीय भाग में मरण करने वाला जीव, देव, मनुष्य, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च तथा चौथे भाग में मरण करने वाला जीव उपरोक्त तीन एवं विकलत्रय को प्राप्त होता है। * इस गुणस्थान का जीव स्थावरों में जावे तो बादर पर्याप्तकों में पैदा होता है। 3. मिश्र गुणस्थान इस गुणस्थान का अपर नाम सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान है। अर्थात् जहाँ पर सम्यक्त्व और मिथ्यात्व इन दोनों के मिश्र परिणाम होते हैं, इसीलिये इसको मिश्र गुणस्थान नाम दिया गया है। इस गुणस्थान का स्वरूप व्यक्त करते हुए आचार्य लिखते हैं कि जिस प्रकार अच्छी तरह मिला हुआ दही और गुड़ पृथक् पृथक् नहीं किया जा सकता है उसी प्रकार सम्यक्त्व और मिथ्यात्व से मिश्रित भाव सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान जानना चाहिए। इसी पं. सं. 1/10,169, ध. 1/1, 12 गा. 109, गो. जी. का. गा. 22, ल. सा. 107/145 118 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org