________________ अर्थात जिस प्रकार मछलियों के चलने में जल सहायक (कारण) है वैसे ही जीव और पुद्गलों को गमन करने में जो कारण है वह धर्मद्रव्य है। जो जीव और पदगल ठहरे हुए हैं उनको न तो चलाता है न चलने की प्रेरणा करता है। जो जाना नहीं चाहता है उसको बलात् नहीं चलाता है, लेकिन जो जीव और पुद्गल गमन करते हैं वे धर्म द्रव्य की सहायता से ही चलते हैं। - आचार्य महाराज ने धर्मद्रव्य का दृष्टांत मछली क्यों दिया? इसका एक वैज्ञानिक कारण यह समझ में आता है कि सिर्फ मछली ही ऐसा जलचर प्राणी है जो पानी का माध्यम कैसा भी हो वह गमन कर सकती है अर्थात् विपरीत धारा में भी। इसमें मेरा अभिप्राय यह है कि कोई झरना बह रहा है और उसकी धारा काफी ऊँचाई से नीचे की ओर आ रही हो तो जल का माध्यम लेकर मछली सहज ही ऊपर चली जाती है। ये विशेषता सिर्फ मछली में है अन्य किसी भी जलचर प्राणी में विद्यमान नहीं है। इसीलिए धर्मद्रव्य का दृष्टांत देने में मछली ही उपयुक्त उदाहरण बनी। 4. अधर्म द्रव्य - अब अधर्म द्रव्य का स्वरूप बताते हैं ठिदिकारणं अधम्मो विसामठाणं च होइ जइ छाया। पहियाणं रुक्खस्स य गच्छंत णेव सो धरइ॥' अर्थात् जिस प्रकार पथिकों को ठहरने में वृक्ष की छाया सहायक होती है उसी प्रकार जीव और पुद्गल को ठहरने में सहायक है वह अधर्म द्रव्य है। चलते हुए जीव को और पदगल को न तो ठहराता है और न ठहरने की प्रेरणा करता है। कोई भी जीव और पुद्गल यदि जा रहा होता है तो अधर्म द्रव्य उसको जबरन रोकता नहीं है यदि चाहे तो रुक सकता है परन्तु रुकेगा तो अधर्मद्रव्य की सहायता से ही रुकेगा, क्योंकि वृक्षों की छाया किसी को भी बलात अपने पास नहीं रोकती है। इसकी छोटी सी परिभाषा पं. दौलतराम जी ने भी अपने छहढाला के तीसरी ढाल में किया है।' (i) भा. सं. गा. 307 (ii) ठाणजुदाण अधम्मो पुग्गलजीवाण ठाण सहयारी। छाया जह पहियाणं गच्छंता णेव सो धरइ।।18।। बृ. द्र. सं. तिष्ठत होय अधर्म सहाई जिनबिनमूर्ति निरुपी। छहढ़ाला 3/7 2 55 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org