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अपने विद्यासागर न्यायरत्नादि विशेषणों को लज्जनीय करनेका कारण न करते यदि आप जिनाज्ञा प्रतिपालनके अभिलाषी, आत्मार्थी, विवेकी, तत्त्वज्ञ, भवभीरू हो तो आपके लेखकी मेरी लिखी हुई उपरकी समीक्षाके लेखकों परम हितकारी समझ के आपने श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणको का निषेध किया जिसका प्रगटपने श्रीसंघ समक्ष या जैन पत्र में मिथ्यादुष्कृत दे करके उपरको छ कल्याणकोंकी सत्य बात को अंगीकार करोंगे और अन्य भव्यजनों को भी कराओगे वोही श्रीमद्भगवत् आशा के आराधनका कारण होनेसे निजपरके आत्म हितका कारण तथा आपके विशेषणों की सफलता है नतु सत्य बातका निषेध करने के लिये गच्छ पक्ष के पण्डितानिमानस उत्सूत्र प्ररूपणा में आगे इच्छा आपकी ॥ इति श्रीशांति विजयाख्यन्यायरत्नोपाधिधारकस्य कल्याणक संबन्धिनोलेख समीक्षा समाप्ता जाता ॥
और अब श्रीतपगच्छके सबकोई मुनिमण्डल वगैरह प्राय करके श्रीपर्युषण पर्वके धर्म ध्यान के दिनों में श्रीकल्व सूत्र के व्याख्यानाधिकारे श्रीविनयविजयजी कत सुखबोधिका वृत्तिको बांचते हैं उसीमें छ कल्याणककोंका निषेध सम्बंधी वृत्तिकारने निज तथा परको दुःखका कारण उत्सूत्र भाषण रूप जो व्याख्याकरी हे उसीको वर्तमानकाले गच्छ कदाग्रही लोग हर वर्षे बांचकर आपस में खंडन मंडनका झगड़ा पर्युषणामें ले कर बैठते हैं तथा गच्छ कदाग्रहके कुसंपको बढ़ाकर के उत्सूत्र भाषणोंसे निज परको संसार वृद्धिका तथा दुर्लभ बोधीका कारण करते हैं उसीका निवारण करनेके लिये और सत्यग्राही आत्मार्थी पुरुषोंके आगे श्रीजिना - जाकी शास्त्रानुसार सत्य बातका प्रकाश करने के लिये श्री
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