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खुलासे लिखी है जिसको तो मंजूर न करते हुए इन्हीं महाराजके विरुद्धार्थ में इन बातका निषेध करके मुग्ध जीवोंको अपने गच्छ कदाग्रहकी भ्रमजाल में फसानेका उद्यम करते हैं और इन्हीं महाराजके अभिप्राय विरुद्ध कल्याणकाधिकारे अधरा पाठ लिखके फिर इन्हीं महाराजके वचनोंको सत्य मानने वाले बनते हैं सो भी न्याय रत्नजीकी कलयुगी विद्यासागरादि विशेषणों की अपूर्व विद्वत्ताकी चतुराईका नमूना मालूम होता है सो विवेकी सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे,--
और ( खरतर गच्छवालोंको पूछना चाहिये गर्भापहारको अगर कल्याणिक मानते हो तो अच्छेरा किसको मानते हो दश अच्छेरेमें गर्भापहारको एक तरहका अच्छेरा कहा फिर कल्याणक कैसे हो सकता है) न्याय रत्नजीके इस लेख पर भी मेरेको इतना ही कहना है कि जैसे श्री आदिनाथ स्वामी १०८ मुनिओं के साथ मोक्ष पधारें उसीको अच्छेरा कहते हैं और उसीकोही मोक्ष कल्याणक भी मानते है तथा श्रीमल्लीनाथ स्वामीके स्त्रीत्व पने में उत्पन्न होने को अच्छेरा कहते हैं और स्त्रीत्वपने में ही जन्म दीक्षादि कार्य हुए उन्होंको स्त्रीत्वपने सहित तीर्थकरके कल्याणकभी मानते हैं तैसे ही श्रीमहावीर स्वामोके गर्भापहारको अछेरा कहते हैं और उसी गर्मापहारसे त्रिशला माताकी कूक्षिमें अवतार लेनेको दूसरा च्यवनरूप कल्याणक भी मानते हैं सो खरतर गच्छवालोंका कल्याणक मानना श्रीस्थानांगजी श्रीसमवायांगजी श्रीआचारांगजी और श्रीकल्पसूत्रादि पंचांगीके अनेक शास्त्रानुसार और युक्ति सहित होनेसे उसीका निषेध कदापि नहीं हो सकता है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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