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भावक्रिया
समाधि और सफलता
आचार्य की सन्निधि । शिष्य जिज्ञासा के स्वर में बोला-गुरुदेवप्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सफल होना चाहता है । कोई सफल हो जाता है और कोई सफल नहीं होता। सफलता का हेतु क्या है? कोई असफल होना नहीं चाहता फिर भी असफल होता है । ऐसा क्यों होता है? मैं इसका रहस्य जानना चाहता हूं।
गुरु ने बहुत संक्षिप्त उत्तर दिया - सफलता का नाम है समाधि और समाधि का नाम है सफलता । समाधि और सफलता-दोनों एक ही बात है। चाहे धर्म का क्षेत्र हो, विद्या या व्यापार का क्षेत्र हो, वही व्यक्ति सफल हो सकता है, जिसे समाधि मिल गई है । जिसे समाधि उपलब्ध नहीं हुई है, वह किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता। द्रव्यक्रिया : भावक्रिया ____ जैन दर्शन की साधना पद्धति में दो शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं-द्रव्य और भाव। द्रव्य शब्द के अनेक अर्थ हैं और भाव शब्द के भी अनेक अर्थ हैं। प्रस्तुत प्रसंग में द्रव्य और भाव का एक अलग अर्थ है । मैं जानता हुआ काम करता हूं, इसका नाम है भाव और मैं नहीं जानता हुआ काम करता हूं, इसका नाम है द्रव्य । अन्यमनस्क भाव से काम करना है-द्रव्यक्रिया । तन्मय होकर काम करना है-भावक्रिया ।
जानन् करोमि भावोऽयं, अजानन् द्रव्यमुच्यते । तन्मना इति भावोऽयं, द्रव्यमन्यमना भवेत् ।।
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