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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
साठ हजार वर्ष तक कोई प्रतिमा ही खड़ी रह सकती है। ऐसा कायोत्सर्ग करने वाला व्यक्ति प्रतिमा की तरह ही स्थिर और निश्चल होता होगा । कायोत्सर्ग : विशोधन
कायोत्सर्ग का दूसरा प्रयोजन है - विशोधन । विशुद्धि के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है । एक जैन श्रावक और मुनि प्रतिक्रमण करता है । प्रतिक्रमण का एक अंग है कायोत्सर्ग । साधक इस संकल्प के साथ कायोत्सर्ग को स्वीकार करता है मैं पूर्वकृत प्रमाद के परिष्कार, प्रायश्चित्त, विशोधन और शल्य - विमोचन द्वारा पाप कर्मों को नष्ट करने के लिए कायोत्सर्ग करता हूं'तस्स उत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहिकरणेणं विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं ।'
शल्य - विमोचन का उपाय
आचार्य हेमचंद्र ने भगवान् महावीर की स्तुति में लिखा- प्रभो ! केवल शिथिलीकरण और कायोत्सर्ग के द्वारा आपने मनःशल्य को दूर कर दिया ।
मनः वचःकायचेष्टाः, कष्टाः संहृत्य सर्वथा ।
श्लथत्वेनैव भवता, मनःशल्यं वियोजितम् ।।
विशल्यीकरण की प्रक्रिया बहुत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है । बाहर के शल्य तो भर जाते हैं पर भीतर का शल्य बहुत मुश्किल से भरता है। आंतरिक शल्य बहुत गहरा और कष्टदायी होता है । शल्य है अन्तर्व्रण । यह व्यक्ति को भीतर ही भीतर सालता रहता है । एक शल्य है माया । आदमी बहुत मायाजाल रचता रहता है । उसके भीतर इतने गहरे घाव हो जाते हैं कि वे भरते ही नहीं । कायोत्सर्ग एक उपाय है शल्य - विमोचन का, घावों को भरने
का ।
पाप कर्मों का निर्जरण
कायोत्सर्ग का सबसे बड़ा प्रयोजन है पाप कर्मों का निर्जरण करना । कर्मों को क्षीण करने का शक्तिशाली उपाय है कायोत्सर्ग । जब हमारा प्रयत्न
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