Book Title: Apna Darpan Apna Bimb
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 219
________________ २०२ अपना दर्पणः अपना बिम्ब है। संबंध कभी स्थायी नहीं हो सकता। इस शरीर के साथ जो संबंध हुआ है, वह अनित्य है। किसी स्थान या किसी कालखण्ड के साथ जो संबंध हुआ है, वह अनित्य है। एक दिन छूट जाने वाला है। किसी व्यक्ति के साथ जो संबंध जुड़ा है, वह भी अनित्य है। यह एक प्राकृतिक और आध्यात्मिक नियम है। इसे सब लोग जानते भी हैं। संस्कृत कवि ने इस सचाई को इस भाषा में लिखा-संयोगाः विप्रयोगांताः-प्रत्येक संयोग का अंत वियोग में होता है। साक्षात्कार का क्षण : चेतना में बदलाव प्रश्न होता है-हम इस सचाई को जानते हैं फिर भी हमें दुःख होता है, इसका कारण क्या है? इसका कारण यह है-हमने केवल वाचिक ज्ञान ही किया है, वास्तविकता को जाना नहीं है। जानना है साक्षात्कार । भारतीय दर्शन में मूल शब्द जानना नहीं है। मूल शब्द है दर्शन। हम साक्षात्कार नहीं करते, केवल जान लेते हैं। कान से किसी शब्द को सुन लिया, मतिज्ञान से उसे ग्रहण कर लिया, अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा हो गई। जानने का अर्थ इतना ही नहीं है। जानने का मतलब है-उस वस्तु या शब्द की तह तक पहुंच जाएं, अनुभूति के स्तर पर पहुंच जाएं, उसे साक्षात् देख लें। सूरज रोज उगता है और रोज अस्त होता है। क्या किसी व्यक्ति के मन में सूरज को देखकर वैराग्य जागा? राग कम हुआ? जैन रामायण का प्रसंग है-जिस दिन हनुमान ने सूर्य का साक्षात्कार किया, उनकी चेतना का रूपान्तरण हो गया। यह वैराग्य पैदा हुआ साक्षात्कार होने पर। बूढे आदमी और सूखे पत्ते को किस आदमी ने नहीं देखा? शवयात्रा को किसने नहीं देखा? बीमार को किसने नहीं देखा? जब बुद्ध ने मुर्दे को देखा, तब सचमुच उनमें बुद्धत्व जाग गया। जब नमि राजर्षि ने ध्वनि और अध्वनि में अंतर किया, चेतना बदल गई। चेतना बदलती है साक्षात्कार के क्षणों में। अनित्यता का साक्षात्कार करें हम अनित्यता के नियम को जानते हैं पर उसका साक्षात्कार नहीं करते। पदार्थ कितना अनित्य है, उस पर ध्यान नहीं देते। जिस दिन व्यक्ति नया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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