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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
या नहीं? यदि हम क्षमा करना चाहते हैं तो यह देखें - सहन करने की शक्ति है या नहीं? एक मुनि के लिए कहा गया - मुनि पृथ्वी के समान सहनशील बने । सहन करना और समर्थ होना-ये तात्पर्य में एक हो जाते हैं। जो समर्थ है, शक्तिशाली है, वह सहन कर सकता है। जो शक्तिशाली है, वह क्षमा कर सकता है। जो शक्तिशाली है, वह मैत्री कर सकता है। कमजोर आदमी के लिए महावीर के दर्शन में कहीं स्थान नहीं है। जो कमजोर है, दुर्बल है, वह सहिष्णुता, क्षमा और मैत्री जैसे महान् तत्त्व का भार नहीं उठा सकता। समर्थ होना बहुत जरूरी है। महावीर क्षत्रिय थे। क्षत्रिय बहुत समर्थ होता है । महावीर ने अपने सामर्थ्य का उदात्तीकरण कर दिया। जो शक्ति दूसरों को मारने में, युद्ध करने में खपती थी, उसका उदात्तीकरण कर दिया, भीती स्रोत को उद्घाटित करने में उस शक्ति का नियोजन कर दिया । सहिष्णुता है - शक्ति का उदात्तीकरण |
यह सहिष्णुता की संक्षिप्त मीमांसा है। हम चिन्तन-मनन के द्वारा इसे व्यापक संदर्भ में समझें । शरीर, मन और भावात्मक स्थितियों के साथ साथ कर्मशास्त्र के आधार पर इसकी उपयोगिता का मूल्यांकन करें। अंतराय कर्म का क्षयोपशम, मोहनीय कर्म का क्षयोपशम और ज्ञानावरणीय कर्म का क्षमोपशम-इन तीनों की युति होती है तब सहिष्णुता के महासागर में अवगाहन करने की अर्हता जागृत होती है। हम अपनी अर्हता को जगाएं, सहिष्णुता का विकास करें, सफल एवं शांतिपूर्ण जीवन का रहस्य हमारे हाथ में होगा ।
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