Book Title: Apna Darpan Apna Bimb
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 247
________________ २३० अपना दर्पणः अपना बिम्ब है। खुरदरा है या चिकना है? हल्का है या भारी है? स्निग्ध है या सूक्ष है? श्वास प्रेक्षा के क्षण में इन सबका निरीक्षण करना, यह है सत्य की खोज। यदि हम इस प्रकार केवल श्वास प्रेक्षा के प्रयोग को वर्षों तक चलाएं तो ध्यान के लिए दूसरे विकल्प की अपेक्षा ही नहीं रहेगी। संदर्भ रस का श्वास के साथ जुड़ा एक तत्त्व है रस । श्वास का रस कैसा है? श्वास खट्टा है तो कैसा है? आंवले जैसा है? इमली जैसा है? या खट्टे दही जैसा है? श्वास मीठा है तो कैसा है? गुड़ जैसा है? चीनी जैसा है? खजूर या मधु जैसा है? वह तिक्त है या कसैला है? श्वास की इन सारे पहलुओं से प्रेक्षा करें, प्रेक्षा करते चले जाएं। श्वास के रस में जो तारतम्य है, वह हमारी पकड़ में आता चला जाएगा। यह तारतम्य की अनुभूति ही सत्य की खोज है। श्वास प्रेक्षा : अनेक पहलु __ हम इन सारे संदर्भो में श्वास प्रेक्षा का मूल्याकंन करें। कितना महत्त्वपूर्ण है यह प्रयोग । हम श्वास के वर्ण को खोजें, गंध को खोजें,रस और स्पर्श को खोजें और खोजते ही चले जाएं, जहां पहुंचना है, हम वहां पहुंच जाएंगे। इसके लिए किसी प्रयोगशाला की जरूरत नहीं होगी। हमारा अंतर्ज्ञान इतना संवेदी और इतना ग्रहणशील बन जाएगा कि जो भी पर्याय सामने आएंगे, हम उन्हें पकड़ लेंगे। जिन लोगों ने श्वास प्रेक्षा का सूक्ष्म प्रयोग किया है, वे काफी गहराई में पहुंचे हैं। उनके सामने बहुत बातें स्पष्ट हो जाती हैं, अनेक सूक्ष्म घटनाएं चित्रवत् सामने आ जाती हैं। ऐसा होता है और प्रत्येक साधनाशील व्यक्ति इस स्थिति को उपलब्ध हो सकता है। श्वास प्रेक्षा के साथ और भी अनेक पहलु जुड़े हुए हैं। हमने श्वास लिया, वह भीतर किस जगह पहुंचा? वह कहां से बाहर आ रहा है? श्वास के यात्रापथ को देखें। श्वास के इतने पर्याय बन जाते हैं कि हम देखते ही चले जाएं। इनके साथ भूत और भविष्य का ज्ञान भी जुड़ा हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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