Book Title: Apna Darpan Apna Bimb
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 249
________________ आहंसु विज्जा चरणं पमोक्खं साधना की तीन भूमिकाएं हैं। प्रथम भूमिका है-अंतप्रवेश या अंतर्बोध । दूसरी भूमिका है अंतःस्थिति। तीसरी भूमिका है-अंतर् अनुभूति अन्तर्वोष जब व्यक्ति साधना शुरू करता है तब सबसे पहले अन्तर्बोध की स्थिति बनती है। इस भूमिका में व्यक्ति को अपने भीतर का ज्ञान होने लग जाता है। जो व्यक्ति हमेशा बाहर ही बाहर रहता है, उसका भीतर में प्रवेश हो जाता है। उसका चित्त भीतर में जाने लगता है, अंतःस्थिति तक पहुंचने का दरवाजा खुल जाता है। जिस व्यक्ति को इतना सा बोध हो जाता है, वह अन्तर्बोध की भूमिका का स्पर्श कर लेता है। __ कुछ लोगों ने प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में एक आपत्ति उठाई, यह ध्यान नहीं है, धारणा है । यह ठीक बात है कि ध्यान की पहली भूमिका ध्यान सीखने के लिए है। हम यह न माने-पहली भूमिका में ही ध्यान होना शुरू हो गया। ऐसा मानेंगे तो यह बड़ी भूल हो जाएगी। पहली भूमिका में व्यक्ति ध्यान का क्रम सीखता है। ध्यान कैसे करना चाहिए? भीतर में प्रवेश कैसे करें? उसके कुछ उपाय या कुछ गुर हाथ में आ जाते हैं। अंतःस्थिति दूसरी भूमिका है अंतःस्थिति की । इसमें ध्यान की स्थिति होगी। इस भूमिका में व्यक्ति भीतर में रहना सीख लेता है। पहली भूमिका धारणा की भूमिका होती है। ध्यान की भूमिका दूसरी भूमिका है। हम पहले शरीर को देखते हैं, श्वास को देखते हैं। यह एक प्रकार से धारणा की स्थिति है। ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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