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अप्पणा सच्चमेसेज्जा
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अनुभूत सत्य
इन सारे पहलुओं की खोज सत्य की खोज है। यह किसी प्रयोगशाला में परीक्षित सत्य है या नहीं किन्तु अनुभूत सत्य अवश्य है। आज आदमी का विश्वास यंत्रों पर अधिक हो गया है। जब तक यंत्रों के द्वारा किसी बात की परीक्षा नहीं की जाती तब तक उसे प्रमाणित नहीं माना जाता । आज के यांत्रिक युग में बाहर की प्रयोगशाला जरूरी है, इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। जो युग की धारणा बन जाती है, उसे अस्वीकार किया भी कैसे जाए? मैं इस धारणा को तोड़ने की बात नहीं कर रहा हूं किन्तु इसके साथ एक बात जोड़ देना चाहता हूं-बाहर की प्रयोगशाला के साथ-साथ भीतर की प्रयोगशाला का निर्माण अवश्य होना चाहिए। बाहर की प्रयोगशाला के यंत्र धोखा दे सकते हैं, भीतर की प्रयोगशाला के यंत्र कभी धोखा नहीं देते। इस भीतर की प्रयोगशाला का निर्माण सत्य की खोज के द्वारा ही संभव है।
युग में बा धारणा बन जाती है। कर रहा हूं किन्तु इसकी प्रयोगशाला
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