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अप्पणा सच्चमेसेज्जा अच्छी भावना । हमारे मस्तिष्क का एक भाग है एनीमल ब्रेन। वह गंध से बहुत प्रभावित होता है। वहीं हमारे संस्कार और वृत्तियां पैदा होती हैं। कहा गया-अर्हत् तीर्थंकर जो होते हैं, उनके श्वास में भी कमल जैसी सुगन्ध होती है । शरीर की गंध से पूरे व्यक्तित्व को पहचाना जा सकता है। इसका अर्थ है-जिसकी भावना पवित्र और निर्मल होती है, उसके शरीर से अच्छी गंध आती है। जिसकी भावना विकृत होती है उसकी गंध बहुत दूषित हो जाती है। लेश्या के साथ जुड़ा हुआ है गंध का संबंध । श्वास प्रेक्षा करते समय व्यक्ति यह देखे- मैं अभी जो श्वास प्रेक्षा का प्रयोग कर रहा हूं, उसमें कौनसी गंध है? जिस समय अच्छा भाव हो उस समय श्वास प्रेक्षा का प्रयोग करे और गंध को देखे। बुरे विचार के आने पर भी प्रेक्षा के प्रयोग से गंध का अनुभव करे। इस स्थिति में गंध की तरतमता का पता चल जाएगा। सत्य का मार्ग : भीतर की खोज
हम श्वास के सारे नियमों और बदलते हुए पर्यायों का अनुभव करें। हमें सत्य की खोज के लिए कहीं बाहर जाना ही नहीं पड़ेगा। जो सत्य की खोज में बाहर भटकता रहेगा, उसे कभी सत्य नहीं मिलेगा। सत्य अपने भीतर की खोज से उपलब्ध होगा। जो देखना नहीं जानता, वह सत्य की खोज कैसे करेगा? सबसे बड़ी बात है निरीक्षण। निरीक्षण का भी नियम है। देखना कोरा निषेधात्मक नहीं है। हमें यह समझना होगा कि हम कैसे देखें? कैसे सोचें? समता के साथ देखना ही देखना है। जिस क्षण में राग-द्वेष नहीं है, वह प्रेक्षा का क्षण है। इस स्थिति में ही हमें सत्य का पता चलेगा। हम यह अनुभव कर पाएंगे-हमारे भीतर क्या क्या घटित हो रहा है? श्वास के साथ क्या कुछ भीतर जा रहा है? उसमें क्या क्या बदलाव आ रहा है? जब तटस्थभाव से दर्शन होगा तब ये सारी सचाइयां साक्षात् हो पाएंगी। संदर्भ स्पर्श का
श्वास के साथ जुड़ा एक तत्त्व है स्पर्श । हम यह देखें-मैं जो श्वास ले रहा हूं उसका स्पर्श कैसा है? यह करौत जैसा है या छुरी के दांतों जैसा
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