Book Title: Apna Darpan Apna Bimb
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 250
________________ आहेसु विज्जा चरणं पमोक्खं २३३ तब होगा जब हम लम्बे समय तक एक बिन्दु पर टिक जाएं। मान लीजिए-हम दर्शन केन्द्र पर ध्यान कर रहे हैं। यदि हम उसी केन्द्र पर एक घंटा तक निरन्तर ध्यान करते रहते हैं तो ध्यान की स्थिति बनती है। हम किसी भी चैतन्य केन्द्र पर एक साथ एक घंटा तक ध्यान करें, इसका नाम है अंतःस्थिति। इसका अर्थ है-हम अपने भीतर ठहर गए। अंतर अनुभूति ____ तीसरी भूमिका है-अन्तर् अनुभूति की । यह समाधि की भूमिका है। यह तादात्म्य की स्थिति है। इसमें ध्याता और ध्येय दो नहीं रहेंगे। ध्याता, ध्येय और ध्यान-तीनों एक बन जाएंगे। ध्यान और समाधि के संदर्भ में यह कथन बहुत महत्त्वपूर्ण है शब्दादीनां च तन्मात्रं, यावद् कर्णादिषु स्थितम् । तावदेव स्मृतं ध्यानं, समाधिः स्यादतः परम् ।। जब तक शब्द कान में आते रहें और व्यक्ति को यह पता चलता रहे कि शब्द आ रहे हैं तब तक ध्यान की स्थिति है। शब्द सुनना बंद हो जाए, वह समाधि की स्थिति है। तीन स्थितियां हैं-व्यक्ति ध्यान में बैठा है। शब्द आया और उसी पर व्यक्ति का ध्यान अटक गया, यह धारणा की स्थिति है। शब्द सुनाई दिया पर उसका क्या अर्थ है? इस पर ध्यान नहीं गया, यह ध्यान की स्थिति है। व्यक्ति ध्यान की उस स्थिति में चला गया, जहां शब्द सुनना ही बंद हो गया, यह समाधि की स्थिति है। अंतःस्थिति : व्रत चेतना का विकास प्रेक्षाध्यान धारणा से लेकर समाधि तक की साधना है, अंतर्बोध से लेकर अन्तर् अनुभूति तक पहुंचने की साधना है। जो प्रेक्षाध्यान की साधना का प्रारंभ करता है, कम से कम उसे अपना बोध हो जाता है। वस्तुतः यह मात्र देहली प्रवेश है। उससे आगे की स्थिति अंतःस्थिति की भूमिका में प्रवेश पाने पर ही उपलब्ध होती है। एक प्रश्न बहुत बार पूछा जाता है-साधना करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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