Book Title: Apna Darpan Apna Bimb
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 242
________________ सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा २२५ होती है। देखो, तुम मेरी चमड़ी को देखो। कैसी लहुलुहान हो रही है। मां ने पूछा - बेटा ! क्या हुआ? तुम्हारी सीख मानी, उसका यह परिणाम है। आखिर बात क्या हुई बेटे! मां ! कक्षा में अध्यापक साहब आए। कुर्सी पर स्याही ढुली हुई थी। वे बिना देखे ही कुर्सी पर बैठने लगे । मैंने सोचा-कुर्सी पर स्याही गिरी हुई है। मास्टर साहब इस पर बैठेंगे तो इनके सारे कपड़े खराब हो जाएंगे। मैंने उनके कपड़ों को गंदा होने से बचाने के लिए कुर्सी को पीछे खिसका दिया। मैंने इतना अच्छा काम किया और उसका मुझे यह परिणाम भुगतना पड़ा। परिष्कार का तरीका जब किसी बात का अर्थ ठीक नहीं समझा जाता है तब यह स्थिति बनती है। अन्याय को सहन नहीं करना चाहिए । यह वाक्य बहुत बार दोहराया जाता है पर कम से कम यह तो समझें कि अन्याय क्या है? इसे समझे बिना हम एक-दूसरे को सहन नहीं करते हैं तो एक नई समस्या पैदा कर देते हैं। सहिष्णुता का सबसे बड़ा प्रतिफल या आचरण होगा-अपने साथियों को सहन करना। अन्याय को नहीं सहना है, बुराइयों और गलतियों को नहीं सहना है किन्तु उनका परिष्कार करना है। परिष्कार का तरीका दूसरा होता है। कोई असहिष्णु आदमी कभी प्रतिकार या परिष्कार नहीं कर सकता । असहिष्णुता के द्वारा किया गया प्रतिकार किसी के हृदय को छूता भी नहीं है। वही बात हृदय को छूती है, जो सहिष्णुता के साथ आती है। बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व है सहन करना और सहिष्णुता के साथ अपने भावों का संप्रेषण करना । सहिष्णुता : शक्ति का उदात्तीकरण धर्म के दस प्रकार बतलाए गए हैं, उसका पहला प्रकार है क्षमा। मैत्री, क्षमा और सहिष्णुता–तीनों जुड़े हुए हैं। इनको कभी अलग नहीं किया जा सकता। यदि हम मैत्री का विकास करना चाहते हैं, 'मेत्ति मे सव्व भूएसु'-सब जीवों के साथ मैत्री करना चाहते हैं तो पहले यह सोचें-हमारे भीतर क्षमा है Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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