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अन्यत्व अनुप्रेक्षा
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के साथ जोड़ दिया, उसके सामने दर्द ही दर्द है। जिस व्यक्ति ने अपनी चेतना को दूसरे स्थान पर लगा दिया, वह दर्द की अनुभूति से बहुत बच गया। उसे अपनी रोजी-रोटी की व्यवस्था करना है। वह सारे दिन दर्द की चर्चा ही कैसे करेगा? जो व्यक्ति अन्यत्व अनुप्रेक्षा का अभ्यासी है, उसने अनुप्रेक्षा के द्वारा दर्द वाले स्थान से अपना ध्यान हटा लिया और अपनी चेतना को दूसरे केन्द्र पर स्थापित कर दिया। जो प्रेरणा, चेतना और ऊर्जा दर्द वाले स्थान को मिल रही थी, वह मिलनी बंद हो गई। उस साधक को दर्द की अनुभूति कैसे होगी? दुःख-मुक्ति का प्रयोग ____ अन्यत्व अनुप्रेक्षा दुःखों से छुटकारा पाने का बहुत बड़ा प्रयोग है। यह केवल भेद-विज्ञान की रटन ही नहीं है, किन्तु अनेक समस्याओं से मुक्ति पाने का प्रयोग है। काम, क्रोध, भय, लोभ आदि की तरंगें कहां से उठती हैं? इस सूक्ष्म विज्ञान को जानना बहुत बड़ी साधना है। अन्यत्व अनुप्रेक्षा का अर्थ है-इन सबके स्विचबोर्ड को जान लेना। आगमों में कहा गया है-भगवान् महावीर साधना काल में अनेक भद्र प्रतिमाओं की मुद्रा में खड़े रहते, नासाग्र पर दृष्टि टिकाए खड़े रहते। नासाग्र एक स्विचबोर्ड है। यहां से बटन चालू
और बंद किया जा सकता है। हमारे शरीर में कई जगह ऐसे स्विचबोर्ड बने हुए हैं। इन्हें चैतन्य केन्द्र कहा जाता है। भेद विज्ञान : संबंध-स्थल की खोज
एकत्व अनुप्रेक्षा में व्यक्ति अपने आपको अकेला कर लेता है किन्तु अन्यत्व अनुप्रेक्षा में शरीर के रहस्यों को जानना होता है। अपने आपको और शरीर को अलग करके यह ज्ञान किया जाता है-इनका संबंध कहां होता है। जहां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती है, वह प्रयाग कौन सा है? जहां भेद विज्ञान को समझना है वहां यह जानना होगा-कहां भेद है और कहां अभेद है? इस स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर का मिलन-बिन्दु कहां है?
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