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अभय की अनुप्रेक्षा
अभय का सीधा सा अर्थ है भयमुक्त होना। प्रश्न है-भयमुक्त कैसे बने? भय कैसे छूटे? भय पकड़ में ही नहीं आ रहा है। भय की कहीं जड़ ही नहीं है। वह पकड़ में कैसे आएगा ? भय की जो जड़ है, उसे हम पकड़ ही नहीं पा रहे हैं। भय तो किसी के कंधे पर बैठकर गोली दाग रहा है। उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। एक डाकू कितना अभय होता है। एक सैनिक कितना अभय होता है। एक कापालिक और तांत्रिक कितना अभय होता है, जो श्मशान में भयंकर अंधकारमय रात्रि में साधना करता है। क्या अभय होना बहुत अच्छा है? डाकू मौत से नहीं डरता, वह मौत को सामने रखकर चलता है। एक सैनिक गोलियों के बीच अपनी जिदंगी बिताता है। एक ओर तोपें गोले उगल रही हैं, दूसरी ओर सैनिक मोर्चे पर डटा हुआ है। क्या हम उसे अभय न मानें? एक सामान्य आदमी निरन्तर डरता रहता है। थोड़ी सी बिजली चमकती है, तेज आंधी और बारिश आती है, व्यक्ति डर जाता है। कहीं कुछ कोलाहल होता है तो भी डर जाता है। हजार प्रकार हैं डर के
भय और अभय का प्रश्न बहुत उलझा हुआ है। हम किसे भय मानें और किसे अभय मानें? यह निर्णय कर पाना बहुत कठिन है। भय का एक ही प्रकार नहीं है। उसके हजारों प्रकार हैं। हम हजारों बातों से डरते हैं। बुढ़ापे का डर है, बीमारी का डर है, पूजा, प्रतिष्ठा और सम्मान का डर है। चोर का डर बना रहता है। भूकंप और बाढ का डर भी सताता है। किसी व्यक्ति का डर लगता है, किसी वस्तु से डर लगता है। शायद एक भी वस्तु ऐसी नहीं है, जिससे डर न लगता हो। अभय कहीं है ही नहीं। जो डाकू मौत
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