Book Title: Apna Darpan Apna Bimb
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 236
________________ सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा एक शब्द है सहिष्णुता । केवल चार व्यंजन किंतु व्यंजन की लब्धि बहुत विशाल । यह शब्द अतिपरिचित बन गया है इसलिए हम कभी यह जिज्ञासा ही नहीं करते-यह सहिष्णुता है क्या? जो परिचित होता है, वह समस्या पैदा कर देता है । अपरिचित रहे तो जिज्ञासा बनी रहती है। परिचित होने पर उस विषय में सोचना ही बंद हो जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ है सहिष्णुता के साथ। इस एक शब्द के पीछे इतना विराट् दर्शन है कि उसकी अभिव्यक्ति से एक नए ग्रंथ का सृजन हो जाए। जीवन का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है सहिष्णुता। एक व्यक्ति भूख को सहन नहीं कर सकता। कहा जाएगा-इसकी सहनशक्ति कमजोर है। एक व्यक्ति सर्दी-गर्मी को सहन नहीं कर सकता। उसे भी कमजोर माना जाएगा। कमजोर होना और असहिष्णु होना-एक ही बात है। एक मुनि के लिए जरूरी है कि वह भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी को सहन करे। एक व्यक्ति इनको सहन कर लेता है, एक व्यक्ति इनको सहन नहीं कर पाता। मन में प्रश्न उठा-इसका कारण क्या है? एक व्यक्ति सहिष्णु क्यों है? दूसरा व्यक्ति असहिष्णु क्यों है? सहिष्णुता और असहिष्णुता का हेतु क्या है? असहिष्णुता का हेतु __ आयुर्वेद में इसके हेतु बतलाए गए हैं। आदमी कई प्रकार के होते हैं। कुछ व्यक्ति त्वक्सार वाले होते हैं। कुछ व्यक्ति अस्थिसार वाले होते हैं। कुछ व्यक्ति मेदःसार वाले होते हैं और कुछ व्यक्ति मांससार वाले होते हैं। यह सारा वर्गीकरण सारधातु के आधार पर किया गया है। जो व्यक्ति मांससार होता है, उसमें क्षमा ज्यादा होती है, सहन करने की शक्ति ज्यादा होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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