________________
अभय की अनुप्रेक्षा
२१३
की साधना करना है तो भय की बात न सोचें, भय को मिटाने की बात न सोचें। अभय के लिए अलग से प्रयत्न करने की जरूरत नहीं है। शरीर की मूर्छा को मिटाएं, अभय घटित होता चला जाएगा। शरीर की मूर्छा को मिटाने का उपाय है आत्मानुभूति में रहना। व्यक्ति जितना आत्मानुभूति में रहता है, आत्मा की सन्निधि में रहता है, उतना ही अभय सथता चला जाता है। हम अधिक से अधिक आत्मा में रहें, चैतन्य में रहें, हमें कोई भय नहीं होगा। 'सव्वओ अप्पमत्तस्स भयं' जो अप्रमत्त है, उसे कहीं से भी कोई भय नहीं है। न दिन में भय है, न रात में भय है। न अकेले में भय है, न भीड़ में भय है। अभय का निदर्शन
महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर पत्र लिख रहे थे। अचानक एक व्यक्ति ने उनके कमरे में प्रवेश किया। वह हाथ में छुरा लिए हुए था। उसने महाकवि से कहा-मैं आपको मारना चाहता हूं। महाकवि शान्तभाव से पत्र लिखने में व्यस्त थे। आगंतुक की यह बात सुनकर भी वे उसी प्रकार शान्त बने रहे। महाकवि ने कहा-तुम मुझे मारने के लिए आए हो?
हां! मैं मारने के लिए आया हूं। कृपा कर तुम कुछ देर के लिए ठहर जाओ। क्यों ठहर जाऊँ?
क्योंकि मेरा काम अधूरा है। मुझे किसी व्यक्ति के पत्र का उत्तर देना है। मैं पत्र लिख रहा हूं। जैसे ही वह पूरा हो जाएगा तुम अपना काम कर लेना।
महाकवि की बात सुनकर आगंतुक विस्मित हो गया। उसने कहा-कोई बात नहीं । आप पत्र लिखिए । मैं तब तक आपके पीछे खड़ा रहूंगा। . रवीन्द्रनाथ टैगोर पत्र लिखने में तल्लीन हो गए । वे उसी शान्तभाव से पत्र लिखते जा रहे थे। ऐसा लग रहा था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। वह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org