Book Title: Apna Darpan Apna Bimb
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 222
________________ अन्यत्व अनुप्रेक्षा " एक ठण्डे पानी से भरी हुई बाल्टी । उसमें अग्नि से उत्तप्त लोहे का गोला डाला । पानी भी गरमा गया, बाल्टी भी गरमा गई । एक बाल्टी में अत्यधिक गर्म पानी । उसमें लोहे का ठण्डा गोला डाला, लोह का गोला गर्म हो गया।' इस प्रसंग में शरीर और मन -चेतना के संबंध का निदर्शन है। लोह का गोला गर्म होगा तो पानी गरमा जाएगा और पानी गर्म होगा तो लोह का गोला गरमा जाएगा। मन संतप्त होता है तो शरीर भी संतप्त हो जाता है और शरीर संतप्त होता है तो मन भी संतप्त हो जाता है। दोनों ओर ध्यान देना आवश्यक है। अन्यत्व अनुप्रेक्षा शरीर और मन दोनों ही संतप्त न हों, दोनों के संबंधों में शांति एवं स्वस्थता आए तो विकास और सफलता की बात सोची जा सकती है। समस्या यह है- -हम शरीर से इतने ज्यादा परिचित हो गए हैं कि उसे चेतना से अलग करना नहीं जानते । कष्ट सहते हैं पर शरीर को चेतना से अलग करना भी नहीं चाहते। अन्यत्व अनुप्रेक्षा का एक रूप है- 'आत्मा भिन्न, शरीर भिन्न' - इस सचाई से भावित होना । हम इस सचाई को दोहराते भी हैं। पर यह स्थूल बात है। अन्यत्व अनुप्रेक्षा का प्रयोग बहुत सूक्ष्मता में चला जाता है। उसकी अलग-अलग अवस्थाओं से जुड़े हुए जो प्रयोग हैं, उनकी ओर हमारा ध्यान बहुत कम गया है। प्रभाव शरीर का सबसे पहले हम इस बार पर विमर्श करें - शरीर हमें कितना प्रभावित करता है। यदि हम शरीर के प्रभाव से बहुत प्रभावित रहेंगे तो भेद-विज्ञान का कोई अर्थ नहीं रहेगा। शरीर के तीन दोष - वात, पित्त और कफ बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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