Book Title: Apna Darpan Apna Bimb
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 220
________________ अध्यात्म के मौलिक नियम २०३ कपड़ा पहनता है, कितनी उमंग और खुशी से पहनता है। जब वह पुराना होता है तब यह नहीं सोचता-इसको कितनी उमंग और खुशी से पहना था। कपड़े के पुराना होते ही वह सारी बातों को भुलाकर उसे कचरे में डाल देता है। नया कपड़ा पुराना होता है, नष्ट हो जाता है। व्यक्ति उसे नष्ट होते देख रहा है पर अनित्यता की अनुभूति में नहीं जा रहा है। व्यक्ति स्वयं कितना बदलता है। आज जो साठ-पैंसठ वर्ष का प्रौढ व्यक्ति है, वह जब बीस-तीस वर्ष का युवा था तब दौड़कर चलता था। उसमें कितना बदलाव आ गया पर वह उसका साक्षात्कार नहीं कर रहा है। यदि जीवन के साथ घटित प्रत्येक घटना और संयोग का साक्षात्कार किया जाए तो हमारी चेतना का रूप ही दूसरा होगा। हम सत्य को जानते हुए भी उसे झुठलाते चले जाते हैं तो चेतना का रूप दूसरा होता है। यह जो अंतर है, हम उसका अनुभव नहीं करते। देखते-देखते तीन-चार पीढ़ियां व्यक्ति के सामने से चली जाती हैं। दुनियां एक ऐसा रंगमंच है, जिस पर प्रतिक्षण नए नए दृश्य मंचित हो रहे हैं। यदि हम उन्हें ध्यान से देखें, साक्षात्कार करें तो चेतना का रूपान्तरण हो जाए। जरूरत है धैर्य की __ अध्यात्म का महत्त्वपूर्ण नियम है अनित्य अनुप्रेक्षा । हम अनुप्रेक्षा करते करते चिन्तन की उस गहराई तक पहुंच जाएं, जहां चिन्तन रुक जाए और अचिन्तन का क्षण आ जाए, अनुभूति का स्तर आ जाए। उस अवस्था में आत्मा भावित हो जाती है, सम्मोहित हो जाती है। उस स्थिति तक पहुंचने के लिए आत्म-सम्मोहन बहुत जरूरी होता है। हम इस भ्रम में न रहें-पांच-सात दिन की साधना से हम भावित हो जाएंगे। इसके लिए धैर्य की जरूरत है। पचास कुए खोदने की जरूरत नहीं है। एक कुआ इतना गहरा खोदना होगा कि नीचे पाताल से पानी निकल आए, पानी का स्रोत मिल जाए। तात्पर्य यह है-हम एक बात पर तब तक धैर्य के साथ टिके रहें जब तक हम स्वयं को भावित न कर लें। भगवान् महावीर ने दीक्षा लेने से पूर्व छह महीने तक अपने आपको अनित्य अनुप्रेक्षा से भावित किया था। अनित्यता से स्वयं को भावित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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