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अध्यात्म के मौलिक नियम
प्रत्येक धर्म, दर्शन और व्यवस्था ने हमेशा सत्य पर बल दिया। सत्य को जानो, जिससे जीवन बहुत अच्छा चलेगा। सत्य की सबसे व्यावहारिक और मौलिक व्याख्या मुझे जो लगी, वह है नियमों का ज्ञान। कृत नियम : अकृत नियम
संसार में कुछ नियम हैं। अन्तर्जगत् के भी नियम हैं और बाह्य जगत् के भी नियम हैं। पदार्थ जगत् के भी नियम हैं और आत्म जगत् के भी नियम हैं। इन सबके प्राकृतिक और सार्वभौम नियम बने हुए हैं। कुछ नियम मनुष्य बनाता है। वे कृत नियम हैं। जो प्राकृतिक नियम हैं, वे अकृत नियम हैं। कृत नियम बनते रहते हैं, बदलते रहते हैं। अकृत नियम बदलते नहीं हैं । जो कृतक होता है, वह अनित्य होता है। न्यायशास्त्र का प्रसिद्ध वाक्य है-यद यद कृतकं तद् तद् अनित्यं, यथा घटः। जो जो कृतक है, वह अनित्य है जैसे घड़ा। जो जो अकृतक है, वह नित्य है, जैसे आकाश । जो स्थाई सत्य है, वह अकृतक है। अध्यात्म की चतुष्पदी ____ हमारी आत्मा के कुछ नियम हैं, धर्म और अध्यात्म के भी कुछ नियम हैं। अध्यात्म के नियमों की एक चतुष्पदी बनती है। अध्यात्म के चार मौलिक नियम ये हैं-अनित्य, अशरण, एकत्व और अन्यत्व। इन चारों को समझे बिना कोई अध्यात्म के मर्म को समझ नहीं सकता। आध्यात्मिक बनने के लिए इन चार आर्य सत्यों को जानना बहुत जरूरी है। संयोग वियोग की युति
पहला सत्य है अनित्य। जितना संयोग और संबंध है, वह सब अनित्य
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