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लेश्याध्यान (३)
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स्वतंत्रता का प्रश्न हो या सामाजिक स्वतंत्रता का प्रश्न, यह तभी कायम रह सकती है जब व्रत और संकल्प की चेतना का विकास होता रहे। समस्या यह है-व्रतों की ओर हमारा ध्यान जाता ही नहीं है। पंद्रह अगस्त पर लालकिले की प्राचीर से दिया गया प्रधानमंत्री का भाषण सुना। उन्होंने सब क्षेत्रों से जुड़े लोगों को धन्यवाद दिया पर जिन लोगों ने नैतिकता के लिए,सदाचार के लिए, व्रत और संयम की प्रतिष्ठा के लिए पावन अभियान चला रखा है, अपना जीवन लगा रखा है, उनको इस भाषण में याद भी नहीं किया गया। यह बहुत विचित्र बात है। आवश्यक है संयम की प्रतिष्ठा
व्रत ओर संयम की प्रतिष्ठा आज की अहम अपेक्षा है। जब तक इस आध्यात्मिक चेतना को, व्रत और त्याग की चेतना को नहीं जगाया जाएगा तब तक इस स्वार्थवादी दुनियां में स्वतंत्रता अक्षुण्ण रह सके, यह बहुत कठिन लगता है। हम अपनी शक्ति का इस दिशा में नियोजन करें। शुक्ल लेश्या
और तेजो लेश्या कैसे जागे? जीवन में कैसे महाव्रत और अणुव्रत आए? स्वार्थ में डूबे हुए आदमी में परमार्थ की भावना कैसे जागे? व्रत की भावना कैसे प्रबल बने? भोग में लिप्त आदमी के मन में त्याग की भावना कैसे जागे? इन सारे प्रश्नों को केन्द्र में रखकर अणुव्रत आंदालेन ने त्याग की मशाल जलाने का काम किया है। यदि समाज में व्रत प्रतिष्ठापित नहीं हुआ तो स्वतंत्रता को कभी न कभी खतरा पैदा हो सकता है। यह खतरा बाहर से नहीं, भीतर से भी पैदा हो सकता है। ज्वलंत समस्याएं : समाधान का सूत्र ___ हम राष्ट्र की वर्तमान स्थिति को देखें। असम की समस्या है, पंजाब
और कश्मीर की समस्या है। उत्तर प्रदेश और बिहार की समस्या भी कम नहीं है। कहीं क्षेत्रवाद समस्या का मुद्दा बना हुआ है, कहीं जातिवाद मुद्दा है और कहीं मंदिर-मस्जिद का मुद्दा है। एक ओर असंयम बढ़ रहा है तो दूसरी ओर ये समस्याएं देश के विकास में बाधा बन रही हैं। सब व्यक्ति संकल्प
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