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कायोत्सर्ग का उद्देश्य
एके साधे सब सधे
“एके साधे सब सधे' यह सूत्र बहुत प्रिय लगता है । सरल मार्ग है-एक को साध लें, सब सध जाएंगे । यदि हजार को मनाना है तो किस किस को मनाएंगे । एक को मना लें, सब मान जाएंगे। एक आचार्य की आराधना करो, सब आराधित हो जाएंगे । ओघनियुक्ति में बहुत सुन्दर विवेचन किया गया है-एक की आराधना करो, सब आराधित हो जाएंगे और एक की विराधना करो, सब विराधित हो जाएंगे । कहा गया-एक मुनि की निंदा सारे संघ की निंदा है । एक मुनि की प्रशंसा सारे संघ की प्रशंसा है । शरीर को जानने का अर्थ
यह प्रश्न बहुत बार उभरता है-ऐसा तत्व क्या है, जिसे साध लेने पर सब साध लिए जाएंगे, जिसे जान लेने पर सारे जान लिए जाएंगे? वह तत्व है हमारा शरीर । शरीर को जान लेने पर सब कुछ जान लिया जाता है । मन और वाणी हमारे शरीर में हैं । आत्मा हमारे शरीर में है । चित्त हमारे शरीर में है । सब कुछ है शरीर में । यदि शरीर के रहस्यों को जान लें तो सब कुछ जान लिया जाएगा। हमारा मस्तिष्क रहस्यों का पिटारा है । यदि एक मस्तिष्क को समग्रता से पढ लें तो दुनियां को पढने की जरूरत ही नहीं होगी । साहित्य, कला, विज्ञान, आगम, अध्यात्म आदि सब कुछ इसी मस्तिष्क से उपजा है । हमारा अस्तित्व और व्यक्तित्व शरीर से ही प्रकट हो रहा है। इस शरीर को जान लेने का अर्थ है सब कुछ जान लेना ।
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