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चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा - (१)
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लगाए । उनमें से पचास व्यक्तियों को शराब से नफरत हो गई, सिगरेट से भी नफरत हो गई। शेष बीस व्यक्तियों में शराब और सिगरेट पीने की मात्रा में बहुत कमी आ गई । यह चैतन्य केन्द्र का प्रभाव है । चैतन्य केन्द्र व्यक्ति के भावों को प्रभावित करता है । यदि चैतन्य केन्द्र का परिष्कार कर दिया जाए तो नशे की आदत बदल जाए। प्रेक्षाध्यान के शिविरों में भी ऐसे अनेक प्रयोग सफल रहे हैं ।
यह है आंतरिक परिवर्तन
बीकानेर में एक शिविर चल रहा था । गंगाशहर के एक संभ्रांत युवक ने उस शिविर भाग लिया । वह दिन में पचास-साठ सिगरेट पीने वाला था । वह बीमार रहता था, खांसी आती रहती थी, उसके फेफड़े भी खराब हो गए। परिवारजनों ने काफी दबाव देकर उसे प्रेक्षाध्यान शिविर में प्रविष्ट करवा दिया। दस दिन ध्यान शिविर चला । उसने ध्यान के प्रयोग किए । दस दिन बाद उससे पूछा- तुम्हारी क्या स्थिति है? सिगरेट पीते हो?
हां, पीता हूं ।
कितनी पीते हो ?
एक या दो ।
इतनी फिर क्यों पीते हो?
महाराज ! मेरे मित्रों ने कहा था- तुम शिविर में बदल जाओगे | मैंने उनसे कहा – कुछ भी हो जाए, मैं सिगरेट नहीं छोडूंगा । उस आग्रह के कारण सिगरेट पीनी पड़ रही है ।
पहले तुम पचास-साठ पीते थे, अब एक दो पर कैसे आ गए ?
पता नहीं, क्या हो गया है? सिगरेट से अपने आप अरुचि हो गई है। एक दो सिगरेट तो मैं अपनी जिद के कारण पी रहा हूं । सच बात तो यह है - पहले पचास-साठ पीता था तो भी कुछ नहीं होता। अब एक दो सिगरेट
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