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शक्ति जागरण का प्रयोग शक्ति केन्द्र
पृष्ठरज्जु के नीचे का स्थान शक्ति केन्द्र है। यह शारीरिक ऊर्जा-जैविक विद्युत् का भण्डार है । यहां से विद्युत् का प्रसारण होता है। स्वास्थ्य केन्द्र
पेडू के नीचे जननेन्द्रिय का अधोवर्ती स्थान स्वास्थ्य केन्द्र है। ग्रंथितन्त्र की दृष्टि से यह कामग्रंथि (गोनाड्स) का प्रभाव क्षेत्र है । इसके द्वारा मनुष्य का अचेतन मन नियंत्रित होता है। योग विद्या के अनुसार इसे स्वाधिष्ठान चक्र कहा जाता है । इसके छः दल होते हैं। प्रत्येक दल एक-एक वृत्ति का क्षेत्र है। जैसे - अवज्ञा, मूर्छा, प्रश्रय (सम्मान), अविश्वास, सर्वनाश और
क्रूरता।
तैजस केन्द्र
तैजस केन्द्र नाभि का स्थान है । इसका संबंध एड्रीनल (अधिवृक्क) ग्रंथि और वृक्क (गुर्दे) के साथ है । योगविद्या के अनुसार इसके दस दल होते हैं । उनमें से प्रत्येक दल में एक-एक वृत्ति विद्यमान है। जैसे-लज्जा, पिशुनता, ईर्ष्या, सुषुप्ति, विषाद, कषाय, तृष्णा, मोह, घृणा और भय । आनंद केन्द्र
आनंद केन्द्र फुफ्फुस के नीचे हृदय का पार्श्ववर्ती स्थान है। यह थाइमस ग्रंथि का प्रभाव क्षेत्र है। हठयोग में इसे अनाहत चक्र कहा जाता है। योग विद्या के अनुसार इसके बारह दल होते हैं। उनमें से प्रत्येक में एक-एक वृत्ति का वास माना गया है, जैसे-आशा, चिन्ता, चेष्टा, ममता, दंभ, चंचलता, विवेक, अहंकार, लोलुपता, कपट, वितर्क और अनुमान । ___एक जैन ग्रंथ में हृदय कमल आठ पंखड़ियों वाला बतलाया गया है। प्रत्येक पंखुड़ी में एक-एक वृत्ति रहती है, जैसे - कुमति, जुगुप्सा, भक्षिणी, माया, शुभमति, साता, कामिनी, असाता । इन पंखुड़ियों पर मनुष्य के भावों का परिवर्तन होता रहता है। उसके आधार पर नाना प्रकार की वृत्तियां प्रकट होती रहती हैं।
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