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अपना दर्पणः अपना बिम्ब उसने बहुत दवाइयां ली पर बुखार नहीं उतरा। उसने रत्न चिकित्सक को अपनी समस्या बताई। रत्न चिकित्सक ने सारी स्थितियों का अध्ययन किया। उसने देखा-अंगुली में लाल माणक पहना हुआ है। समस्या समझ में आ गई। चिकित्सक ने कहा-इस माणक (रत्न) को अंगुली से निकाल दिया जाए। इसे इस कमरे में भी न रखा जाए। चिकित्सक का परामर्श स्वीकार कर लिया गया। जो बुखार इतनी दवाइयों से नहीं मिटा, वह उस रत्न को अंगुली से निकालने के बाद दूसरे दिन ही समाप्त हो गया ।
रह रत्न के प्रभाव का निदर्शन है। पौद्गलिक लेश्या का अर्थ
यदि रत्न का अनुकूल प्रभाव होता है तो वह व्यक्ति को निहाल कर देता है और यदि उसका प्रतिकूल प्रभाव होता है तो वह व्यक्ति को कंगाल भी बना देता है। उसका प्रभाव दोनों ओर होता है। यह नोकर्म लेश्या-द्रव्य लेश्या का प्रभाव है।
पौद्गलिक लेश्या का अर्थ है-किरण, रश्मि, या ज्योति। ये यदि प्रशस्त होते हैं, तो बहुत लाभकारी होते हैं। यदि अप्रशस्त होते हैं तो बहुत हानिकारक होते हैं। हम रंगों के प्रति जागरूक बनें तो हानि से बच सकते हैं, बहुत लाभ उठा सकते हैं। किस रंग का कपड़ा पहनें, किस रंग का खाना खाएं, मकान या कमरे का रंग कैसा हो? इसका विवेक होना जरूरी है। रंग से उपजी समस्या
एक सिनेमा हॉल में बहुत गहरा लाल रंग करवाया गया । जो दर्शक सिनेमा देखने जाते, वे सिर-दर्द से परेशान हो जाते। काफी दिनों तक यह क्रम चलता रहा। सिनेमा में दर्शकों की संख्या घटने लगी। एक दिन ऐसा आया-सिनेमा हॉल से घाटा होने लगा। मालिक समस्या और चिन्ता से घिर गया। चपरासी ने मालिक से कहा-क्या बात है? आप उदास क्यों हैं? मालिक बोला-बहुत घाटा हो गया है। मुझे अभी अभी पांच हजार रुपयों की ज़रूरत
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