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लेश्याध्यान (9)
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्वसाहूणं
दर्शन केन्द्र
विशुद्धि केन्द्र
आनन्द केन्द्र
हरा
शक्ति केन्द्र
नीला
मंत्र जप का चैतन्य केन्द्र और रंगों के साथ प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है । प्राचीन काल से महामंत्र के पद का जप किया जाता रहा है किन्तु उसके साथ रंग और चैतन्य केन्द्र के ध्यान की परंपरा नहीं रही। यह अनुभव किया गया - व्यक्तित्व को बदलने के लिए, स्वास्थ्य के लिए, विघ्नों को मिटाने के लिए मंत्र के साथ रंग और चैतन्य केन्द्र की युति अपेक्षित है। इन बिन्दुओं पर चिन्तन आगे बढ़ा, मंत्रशास्त्रीय दृष्टि का विकास होता चला गया और ये सारी बातें उसमें जुड़ती चली गईं।
णमो अरहंताणं
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अरुण
पीला
हम ' णमो अरहंताणं' का जप करते हैं। यह पद का उच्चारण है। पद का नाम भी वर्ण है। इसमें सात वर्ण हैं। प्रत्येक शब्द का अपना रंग होता है। एक भी शब्द ऐसा नहीं है, जिसका अपना रंग न हो । विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसी मशीन का भी विकास किया गया है, जिससे वर्णों को सुना जा सकता है, शब्दों को देखा जा सकता है। 'णमो अरहंताणं' इन सात अक्षरों का उच्चारण करते समय ज्ञान केन्द्र पर सफेद रंग का ध्यान किया जाता है । सफेद रंग में सारे रंग समाविष्ट हैं। आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से सफेद रंग को सबसे अधिक महत्त्व दिया गया है। ध्यान में सफेद रंग दीखने लग जाए तो मानना चाहिए - साधना की निष्पत्ति हो रही है । हम लेश्या के संदर्भ में देखें तो शुक्ल लेश्या से भी विशिष्ट है परम शुक्ल लेश्या । उसका रंग इतना सफेद है कि वह इस स्थूल दुनियां में दिखाई नहीं देता ।
सफेद रंग का प्रभाव
साधना का अंतिम स्वरूप है सफेद रंग और साधना का अंतिम व्यक्तित्व
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