Book Title: Apna Darpan Apna Bimb
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 212
________________ लेश्याध्यान (२) अहम भूमिका निभाती है उतनी शायद कोई नहीं निभाता । चौथी बाधा है लोभ । इसके कारण बहुत ही निकट के संबंध टूट जाते हैं। जरूरी है भावशुद्धि व्यक्ति के मन में जो भाव होता है, वह प्रकट हो ही जाता है और उससे अनेक समस्याएं उलझ जाती हैं । भाव के प्रकंपन इतने सूक्ष्म हैं कि वे हमारी अतीन्द्रिय चेतना को छू लेते हैं। एक बहरा और अंधा आदमी भी बहुत दूर से ही भाव के प्रकंपनों को पकड़ लेगा। जब मन में भाव खराब आता है, तब अपने आप वैसी स्थिति बन जाती है इसीलिए हमें भावना के स्तर पर सबसे ज्यादा जागरूक होना है। यही लेश्या का सिद्धान्त है । जो १६५ श्या के सिद्धान्त को समझ लेता है वह भावशुद्धि के प्रति जागरूक बन जाता है । हम स्वयं अनुभव करते हैं - हमारे मन में किसी के प्रति अन्यथा भाव आता है तो सामने वाले व्यक्ति के तेवर भी बिना बताए ही बदल जाते हैं। उसके मन में भी एक अन्यथा भाव जन्म ले लेता है और वह एक नई समस्या बन जाता है। इस स्थिति से उबरने के लिए जरूरी है भावशुद्धि और भावशुद्धि के लिए अपेक्षित है लेश्या की चेतना का जागरण । जीवन दर्शन का अर्थ जैन धर्म में तत्त्वज्ञान को बहुत महत्त्व दिया गया है किन्तु उसके साथ आचरण का पक्ष सदा जुड़ा रहा है। जैन दर्शन कोरा दर्शन नहीं किन्तु जीवनदर्शन है। हमने दर्शन को पकड़ा, जीवन को छोड़ दिया । जीवन-दर्शन का अर्थ है - तत्त्व-दर्शन को जीया जाए, उसे केवल जाना ही न जाए। आज जीने की बात छूट गई, केवल जानने की बात रह गई । जैन धर्म में सामान्य तत्त्वज्ञान के लिए पच्चीस बोल का थोकड़ा कंठस्थ करवाया जाता है। उसका एक बोल है - लेश्या के छह प्रकार हैं। व्यक्ति लेश्या के प्रकार जान लेगा पर लेश्या जीवन के लिए कितनी उपयोगी है, यह नहीं जानेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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