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लेश्याध्यान (२)
व्यक्ति ने दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखा । वह भद्दा लगा। व्यक्ति दर्पण को तोड़ने लगा। उसके पीछे खड़े आदमी ने कहा - भले आदमी ! क्या कर रहे हो?
इसमें मेरा चेहरा भद्दा दिख रहा है इसलिए मैं इसे तोड़ रहा हूं।
इसमें दर्पण का क्या दोष है? तुम जैसे हो वैसे ही दर्पण में दीखोगे। दर्पण का काम है प्रतिबिम्ब दिखाना । उसे सुन्दर या भद्दा बनाना दर्पण का कार्य नहीं है।
हम दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखें और जानें पर दर्पण पर गुस्सा न करें। यदि चेहरा भद्दा है तो यह सोचें-इसे सुन्दर कैसे बनाया जा सकता है? हमारा सुन्दर होना या सुन्दर न होना लेश्या पर, भाव पर निर्भर है। लेश्या निर्माता भी है और दर्पण भी है। लेश्या की पवित्रता
सुन्दरता के लिए लेश्या को पवित्र बनाना होता है। जब-जब व्यक्ति पद्म लेश्या, तेजो लेश्या और शुक्ल लेश्या के भावों में जीता है तब तब शरीर और मन की अवस्थाएं ठीक होने लग जाती हैं । जब व्यक्ति कृष्ण, नील और कापोत लेश्या के भावों में जीता है तब सब कुछ गड़बड़ाने लग जाता है। लेश्या ध्यान का मतलब आंख मूदकर बैठना ही नहीं है। उस चेतना के जागरण का अर्थ है लेश्याध्यान, जिससे हम अपने भावों को निर्मल और पवित्र रख सकें। हम इस बात के प्रति निरन्तर जागरूक रहें-हमारे मन में अकारण ही बुरे भाव तो नहीं आ रहे हैं। हिंसा, झूठ, चोरी और काम वासना के भाव
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