________________
१६६
भावशुद्धि का प्रशस्त पथ
मनोवैज्ञानिकों ने इस भावपक्ष पर बहुत विचार किया है। मनोविज्ञान में सामान्य और असामान्य की व्याख्या में इस भावपक्ष का काफी उपयोग किया गया है। जब तक हम कृष्ण, नील और कापोत लेश्या के परिणामों को नहीं बदल देते तब तक असामान्य व्यक्ति सामान्य नहीं बन सकता। सामान्य व्यक्तित्व के लिए तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या का विकास आवश्यक है । वस्तुतः लेश्या - ध्यान केवल रंगों का ध्यान नहीं है, वह भावधारा के प्रति जागरूक होने का, भावधारा के परिष्कार का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है । हम ऐसी स्थिति बनाएं, जिससे कभी अकारण ही गलत भाव न आ पाए । लेश्या की विशुद्धि का अर्थ है-भाव की शुद्धि । लेश्याध्यान उसका उपलब्धि का प्रशस्त पथ है। हम इसे अपनाएं, भावशुद्धि हमारे जीवन में प्रतिष्ठित होती चली जाएगी।
अपना दर्पणः अपना बिम्ब
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org