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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
दूर करता है । जो आलसी हैं, नींद में ऊंघते रहते हैं, सुस्त बैठे रहते हैं, उनके लिए लाल रंग बहुत लाभदायक है। यह कफ प्रधान रोगों को शान्त करता है। रंगों का कार्य
रंगों का काम है शरीर का संतुलन बनाए रखना । एक आदमी बहुत मोटा है, भारी-भरकम है, चर्बी बढ़ती चली जा रही है और दूसरा आदमी बहुत दुबला-पतला है। इसका कारण क्या है ? इसका एक कारण है रंगों का असंतुलन । लाल रंग अधिक बढ़ गया है तो व्यक्ति दुबला-पतला हो जाएगा। नीला रंग अधिक बढ़ गया है तो व्यक्ति मोटा-ताजा होगा, उसकी चर्बी बढ़ती चली जाएगी। जिस व्यक्ति में लाल और नीला - ये दोनों रंग संतुलित हैं, वह न मोटा होगा और न दुबला-पतला। उसका शरीर संतुलित होगा, सुन्दर और सुगठित होगा ।
रंगों का प्रभाव
रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है। लाल रंग अधिक बढ़ गया है तो गुस्सा आने लग जाएगा, उत्तेजना ही उत्तेजना आएगी। यदि नीला रंग कम हो गया है तो व्यक्ति स्वार्थी बन जाएगा। वह केवल अपनी बात सोचेगा, दूसरों का हित-अहित नहीं देखेगा। मानसिक प्रभाव की दृष्टि से भी रंगों का संतुलन जरूरी है।
हमारे शरीर के जितने अंग हैं, उन सबके अपने अपने रंग हैं। बाहर से चमड़ी का रंग एक सा दिखाई देता है पर भीतर में हर अवयव का अपना-अपना रंग है। जिसने शरीर के भीतर गहराई से देखा है, उसने इस तथ्य का साक्षात्कार किया है। रश्मि और रंग का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव है? यह आज वैज्ञानिक अध्ययन का विषय बन चुका है।
गौतम की जिज्ञासाः महावीर का समाधान
गौतम ने भगवान महावीर से पूछा- भन्ते ! क्या कृष्ण लेश्या नील लेश्या के पुद्गलों को प्राप्त कर तद्रूप में (नील लेश्या में) परिणत हो जाती है? महावीर ने कहा- गौतम ! ऐसा होता है। कृष्ण लेश्या केवल नील लेश्या
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