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लेश्या : गंध, रस और स्पर्श
१८१ बीमार बने हुए हैं। वर्तमान वैज्ञानिक कहते हैं-आंतों का घाव, व्रण, अतिसार, हार्ट-अटेक आदि आदि जो बीमारियां हैं, उनके पीछे भावनात्मक कारण ज्यादा कार्य करते हैं। निषेधात्मक भाव और मानसिक तनाव इनकी उत्पत्ति में मुख्य हेतु बनते हैं। अशुद्ध भाव और लेश्या
लेश्याओं की जितनी खराब गंध है उतनी दुर्गंध हमारी दुनियां में नहीं है। लेश्याओं का रस जितना खट्टा है उतना खट्टा रस भी इस स्थूल जगत् में नहीं है। आम की कच्ची केरी को बहुत खट्टा माना जाता है। वह इतनी खट्टी होती है कि आदमी के दांत भी उसे खाने से खट्टे हो जाते हैं। व्यक्ति उसे खा नहीं पाता । लेश्या का रस उससे भी अनंतगुना खट्टा है। क्या दुनियां में इतना खट्टा पदार्थ है?
लेश्या का स्पर्श भी अत्यन्त तीक्ष्ण होता है । जिस लेश्या में झूठ, कपट, ईर्ष्या और कामवासना के भाव पैदा होते रहते हैं, उस कृष्ण लेश्या का स्पर्श कितना तीक्ष्ण है। हमने करौती को देखा है। वह जब चलती है, काठ को चीरती चली जाती है। काठ का पता ही नहीं चलता। तीक्ष्ण शस्त्र मारबल को भी शीघ्रता से चीर देता है। उस करौत से भी अनंतगुना तीखा स्पर्श है कृष्ण लेश्या का । हम उसकी तीक्ष्णता की कल्पना भी नहीं कर सकते। ___लेश्या के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के ऐसे परमाणु हमारे शरीर के भीतर आते हैं। क्या इनसे बीमारी पैदा नहीं होगी? बेचारे यंत्र क्या करेंगे? वे कैसे बीमारी को पकड़ पाएंगे? एक्सरे की पकड़ में कैसे आएंगे? ये वैज्ञानिक यंत्र और गेल्वेनोमीटर की सुइयां कहां तक सफल होंगी? इतने सूक्ष्म गंध, रस
और स्पर्श के परमाणु हैं, जिनका हमें पता नहीं चलता। वे सूक्ष्म परमाणु अपना काम करते चले जाते हैं। भावविशुद्धि और लेश्या __ हम इस बिन्दु पर भावविशुद्धि का मूल्यांकन करें। भावविशुद्धि और
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