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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
हैं। द्रव्य लेश्या संक्लिष्ट होती है तो भाव लेश्या सक्लिष्ट हो जाती है। भाव लेश्या सक्लिष्ट होती है तो द्रव्य लेश्या संक्लिष्ट हो जाती है। भाव लेश्या विशुद्ध होती है तो द्रव्य लेश्या विशुद्ध हो जाती है। द्रव्य लेश्या विशुद्ध होती है तो भाव लेश्या विशुद्ध हो जाती है। इन दोनों में गहरा संबंध है। हमें इन दोनों आयामों में जागरूक रहना होगा। हम रंग और आभामण्डल के प्रति भी जागरूक बनें और अपनी भावनाओं के प्रति भी जागरूक बनें। इन दोनों क्षेत्रों में जागरूकता बढ जाए तो जीवन में बहुत विकास किया जा सकता है। समस्या है लेश्याओं में मेल न होना
आदमी में तनाव बहुत है। वह अनेक प्रकार की चिन्ताओं से घिरा रहता है । वह कभी उदास हो जाता है। उसे वातावरण में रूखापन महसूस होता है। जीवन में सरसता नहीं रहती । इस स्थिति में दूसरे व्यक्ति के प्रति आकर्षण का भाव पैदा नहीं होता । कारण क्या है? इसका कारण है-लेश्याओं का मेल न होना । दो व्यक्ति हैं, दोनों को साथ में रहना है। दोनों की लेश्याओं में मेल नहीं है तो साथ कैसे निभेगा ? एक पूरब में जाएगा तो दूसरा दक्षिण में जाएगा। शादी के अनुबंध से पूर्व लड़के-लड़की के गण मिलाए जाते हैं। यह देखा जाता है कि गण मिलता है या नहीं ? गण मिलते हैं तो कितने मिलते हैं और कितने नहीं मिलते। ऐसा माना जाता है-यदि गण मिलते हैं तो संबंध ठीक निभेगा । यदि गण नहीं मिलते हैं तो संबंध ठीक नहीं रह पाएगा। लड़ाई-झगड़ा, तनाव और मन-मुटाव पैदा होते रहेंगे, संबंधों में मधुरता नहीं रह पाएगी। स्वस्थ दांपत्य की दृष्टि से लोग शादी के समय गण मिलाते हैं। यह लेश्या का गण प्रतिदिन मिलाने का है। यदि लेश्या का गण नहीं मिलता है तो कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं।
हम लेश्या का गण मिलाएं । इसका सूत्र है लेश्या का परिवर्तन । लेश्या को बदला जा सकता है। यदि लेश्या को बदलने की बात समझ में आ जाए तो सब कुछ समझ में आ जाए।
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