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लेश्या : पौद्गलिक है या चैतसिक परिवर्तन का कारक तत्त्व
हम भावों को शुद्ध रखने का अभ्यास करें। उसके साथ साथ द्रव्य लेश्या को बदलने पर भी ध्यान दें। भाव लेश्या और द्रव्य लेश्या-दोनों की शुद्धि परिवर्तन का कारक तत्त्व है। परिवर्तन की जो चर्चा है, वह सारी लेश्या से जुड़ी हुई है। हम प्रयोग शुरू करें द्रव्य लेश्या से। द्रव्य लेश्या को बदलेंगे तो भाव लेश्या में परिवर्तन आना शुरू हो जाएगा। प्रेक्षाध्यान में ज्योति केन्द्र पर सफेद रंग का ध्यान कराया जाता है। जो व्यक्ति सफेद रंग को देखने की साधना करता है, उसे यह अनुभूति हो जाती है-तनाव कम हो रहा है, भाव शुद्ध और पवित्र बनते जा रहे हैं। अनेक लोगों ने इसका प्रयोग किया। उनका सिरदर्द मिट गया। ललाट पर सफेद रंग का ध्यान करने के दो परिणाम सामने आते हैं-भाव विशुद्धि और सिरदर्द से मुक्ति। सिरदर्द के कारण भी भाव अपवित्र हो सकते हैं। जो ललाट का स्थान है,वह आवेगों का स्थान है, कषाय का स्थान है। यह कषाय का कार्यक्षेत्र है। आत्मा और शरीर का मिलन
इस बात पर विचार किया गया – आत्मा और शरीर, सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर-इनके संगम बिन्दु कहां हैं? आत्मा और शरीर का मिलन कहां होता है? सूक्ष्म शरीर भीतर है और स्थूल शरीर बाहर है। आत्मा भीतर है
और शरीर बाहर है। इन दोनों का संगम-स्थल कौनसा है? शरीर में तीन-चार स्थान ऐसे हैं, जहां इनका मिलन होता है। उनमें एक संगम-स्थल है हमारा लिम्बिक सिस्टम । हमारे मस्तिष्क का एक हिस्सा है लिम्बिक सिस्टम। यह वह बिंदु है, जहां आत्मा और शरीर का मिलन होता है। इस मिलन का माध्यम है लेश्या । लेश्या वहां आती है और शरीर तथा आत्मा को मिला देती है। पहला संगम-स्थल
गाड़ियों के ठहरने के स्टेशन बहुत हैं पर जंक्शन बहुत कम हैं। जंक्शन वह होता है, जहां गाड़ियों का मिलन होता है, जहां से नई ट्रेनें चलती हैं ।
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