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लेश्या : पौद्गलिक है या चैतसिक वह बीमार पड़ जाए। रात्रिभोजन के निषेध का एक कारण जीव हिंसा की दृष्टि रही है। उसका दूसरा कारण सूरज के अस्त होने पर पाचन तंत्र का मंद हो जाना है। आचार्य हेमचंद्र ने योगशास्त्र में लिखा-सूर्य के अस्त हो जाने पर हृदय कमल संकुचित हो जाता है, पाचन तंत्र भी संकुचित हो जाता है। रक्त-संचार भी धीमा पड़ जाता है। दर्द रात में अधिक क्यों ?
शरीर में जितना दर्द होता है, उसका पता दिन में कम चलता है, रात्री में अधिक चलता है। रात आते ही घुटनों का दर्द बढ जाएगा, पीठ और गर्दन का दर्द बढ जाएगा। प्रश्न हो सकता है-सारे दर्द रात में ही अधिक क्यों सताते हैं ? दिन में अधिक क्यों नहीं सताते? जितना अजीर्ण होता है, वह प्रायः रात में ही होता है। दिन में कब अजीर्ण होता है? किसी अपवाद को छोड़ दें, प्रायः यह रात में ही होता है। वायु भी रात में अपना खेल दिखाती है। इन सबका कारण क्या है? जब तक सूरज रहता है, ये सब शान्त रहते हैं। सूर्य के अस्त होते ही सबको मौका मिल जाता है। चोरी करने का मौका भी रात को ही मिलता है। नींद भी रात में ही सताती है। जितने तामसिक भाव हैं, उन सबको रात में खुलकर अभिव्यक्त होने का अवसर मिल जाता
रत्न चिकित्सा और लेश्या
सूर्य की एक लेश्या है। चंद्रमा की भी लेश्या है। रत्नों की भी लेश्या है। ये सब नोकर्म लेश्या हैं । रत्नों में सूर्य का प्रकाश बहुत संचित होता है। इसके आधार पर ही जेम्स थेरापी (रत्न चिकित्सा) का विकास हुआ है। रत्न चिकित्सा पर काफी साहित्य लिखा गया है। कलकत्ता के एक विद्वान् हैं, भट्टाचार्य। वे इस मामले में काफी दक्ष हैं । रत्न का प्रभाव बड़ा विचित्र है। इसका कारण है सूर्य की रश्मियों का संचय।
बम्बई की घटना है । एक व्यक्ति निरन्तर बुखार से ग्रस्त रहता था।
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