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लेश्या सिद्धान्त : ऐतिहासिक अवलोकन
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जितने प्रमाणिक स्रोत हैं, जितने ग्रंथ और साहित्य आज उपलब्ध है, उसके
आधार पर विचार करें तो लेश्या की बात महाभारत में मिलती है। महाभारत में कहा गया है-जीव के छह वर्ण होते हैं-कृष्ण, धूम्र, नील, रक्त, हारिद्र और शुक्ल । इनके आधार पर सुख-दुःख को मापा जा सकता है।
षड्जीववर्णाः परमं प्रमाणं, कृष्णो धूम्रो नीलमथास्यमध्यम्।
रक्तं पुनः सहयतरं सुखं तु, हारिद्रवर्णं सुसुखं च शुक्लम् ।। वर्ण और सुख का वर्गीकरण
कहा गया-कृष्ण वर्ण वाले बड़े क्रूर होते हैं। उनमें सुख नहीं होता। धूम्र वर्ण वालों में सुख का अभाव सा रहता है। उन्हें लव मात्र सुख उपलब्ध होता है। नीले रंग वालों में थोड़ा सुख अधिक होता है । लाल वर्ण वालों में सुख की मात्रा और अधिक हो जाती है। शुक्ल वर्ण वाले व्यक्तियों में सुख की प्रबलता होती है । परम शुक्ल वर्ण में अत्यन्त सुख होता है।
वर्ण और सुख का यह एक वर्गीकरण है । इसमें छह वर्ण बतलाए हैं और छह वर्णों के आधार पर होने वाले सुख-दुःख का विवेचन किया है। महाभारत का यह सिद्धान्त लेश्या के सिद्धान्त से बहुत निकट है। यद्यपि पूरा साम्य नहीं है फिर भी इसे काफी निकट माना जा सकता है। लौकिक ग्रंथ है महाभारत
__ महाभारत एक संकलन ग्रंथ है। यह किसी एक दर्शन का ग्रंथ नहीं है। हिन्दुस्तान में जितने विचार प्रचलित थे, उन सबका इसमें संग्रहण कर लिया गया, कोई सीमा-रेखा नहीं रही । वस्तुतः महाभारत है लौकिक ग्रंथ । यह किसी धर्म-संप्रदाय विशेष का ग्रंथ नहीं है। साहित्य को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया-लौकिक साहित्य, वैदिक साहित्य और श्रमण साहित्य।
वेद आदि वैदिक साहित्य है । आगम, त्रिपिटक आदि श्रमण साहित्य है। महाभारत, रामायण आदि लौकिक साहित्य है । आज भी जो लौकिक कथाएं, काव्य और लोकगीत हैं, वे आम जनता के लिए हैं । किसी धर्म-संप्रदाय
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