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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
समय में था और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है आचारांग सूत्र का यह वाक्य- 'अबहिल्लेसे' । सबसे प्राचीन आगम माना जाता है आचारांग । उसमें लेश्या शब्द का प्रयोग प्राप्त है । महावीर से लेकर आज तक यह लेश्या का सिद्धान्त बराबर चल रहा है ।
ऐतिहासिक दृष्टि : मूल स्रोत की खोज
ऐतिहासिक दृष्टि से यह खोजना होता है- अमुक विचार सबसे पहले किसने दिया ? भारतीय दर्शन और जैन दर्शन के संदर्भ में इस तथ्य की खोज ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत अपेक्षित है । आज जितने विचार और जितने सिद्धान्त मिलते हैं, वे सबसे पहले कहां से आए? इनका मूल स्रोत क्या है ? महत्त्वपूर्ण है मूल स्रोत की खोज । उसके बाद संक्रमण होता रहता है। एक अच्छे सिद्धान्त को दूसरा भी अपना लेता है, केवल थोड़ी सी भाषा में बदलाव कर दिया जाता है । विचार और कथानक सबका संक्रमण होता रहा है। हिन्दुस्तान की कहानियां रूस तक पहुंच गई। भारत में रक्षिता- रोहिणी की कहानी बहुत प्रचलित रही है, वह रूस में भी प्रचलित है । कहानियों का बहुत संक्रमण हुआ है । दूसरे देशों के यात्री आते रहे हैं । वहां की कहानियां यहां पहुंची और यहां की कहानियां वहां पहुंच गई । हिन्दुस्तान का विचार और दर्शन दूसरे देशों में पहुंचा, बाहर का विचार और दर्शन हिन्दुस्तान में भी आया । आज हिन्दुस्तान में सात वार (Seven days) प्रचलित हैं। ये कहां से आए हैं? रविवार, सोमवार, मंगलवार - इनका प्रचलन पहले भारत में नहीं था। हम कहानी के चरित्र को देखें, चाहे दूसरे महापुरुषों का चरित्र देखें, कहीं वार का उल्लेख नहीं है। तिथि और मास का उल्लेख मिल जाएगा किन्तु वार का उल्लेख नहीं है। सोमवार, मंगलवार - ये सब बाहर से आए हैं। इनका मूल उत्स हिन्दुस्तान में नहीं है। ये सारे कालान्तर में हिन्दुस्तान में संक्रात हुए हैं।
महाभारत में लेश्या
प्रश्न है - लेश्या का सिद्धान्त कहां से आया ? इसका मूल स्रोत क्या है? यह कहना बड़ा कठिन है कि सबसे पहले यह विचार किसने रखा किन्तु
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