________________
१३२
अपना दर्पणः अपना बिम्ब
विशुद्धि केन्द्र
विशुद्धि केन्द्र का स्थान कंठ देश है । यह थायराइड ग्रंथि का प्रभाव क्षेत्र है। मन का इस केन्द्र के साथ गहरा संबंध है। योगविद्या के अनुसार इसके सोलह दल माने गए हैं। ब्रह्म केन्द्र
ब्रह्म केन्द्र का स्थान है-जीभ का अग्रभाग । उसकी स्थिरता जननेन्द्रिय के नियन्त्रण में सहायक बनती है। ____ कुछ केन्द्र अनुकंपी और परानुकंपी नाड़ी संस्थान के संगम पर बनते हैं, जैसे -तैजस केन्द्र, आनन्द केन्द्र और विशुद्धि केन्द्र | कुछ केन्द्र ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रियों से संबद्ध हैं।
जीभ एक ज्ञानेन्द्रिय है । उसका अग्रभाग चंचलता और स्थिरता-दोनों का संवाहक बनता है। प्राण केन्द्र
प्राण केन्द्र का स्थान नासाग्र है । यह प्राणशक्ति का मुख्य स्थान है। निर्विकल्प ध्यान के लिए इसका प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है। अप्रमाद केन्द्र
___ अप्रमाद केन्द्र का स्थान कान है । इसका जागरूकता से बहुत सम्बन्ध है। आज के विज्ञान ने नाक और कान के विषय में काफी जानकारी विकसित की है । ये दोनों मनुष्य की बहुत सारी वृत्तियों का नियन्त्रण करने वाले हैं और मस्तिष्क के साथ जुड़े हुए हैं। चाक्षुष केन्द्र ____ चाक्षुष केन्द्र का स्थान चक्षु है। इसका जीवनीशक्ति के साथ गहरा संबंध
दर्शन केन्द्र
दर्शन केन्द्र दोनों आंखों और दोनों भृकुटियों के बीच में अवस्थित है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org