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शक्ति जागरण का प्रयोग
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चाक्षुष केन्द्र की साधना के द्वारा एकाग्रता को सघन बनाया जा सकता
___ दर्शन केन्द्र की प्रेक्षा के द्वारा अन्तर्दृष्टि का विकास होता है। यह हमारी अतीन्द्रिय क्षमता है। इसके द्वारा वस्तु-धर्म और घटना के साथ साक्षात् सम्पर्क - स्थापित किया जा सकता है।
ज्योति केन्द्र की साधना के द्वारा क्रोध को उपशांत किया जा सकता है।
शान्ति केन्द्र पर प्रेक्षा का प्रयोग कर हम भाव संस्थान को पवित्र बना सकते हैं । 'लिम्बिक सिस्टम' मस्तिष्क का एक महत्त्वपूर्ण भाग है, जहां भावनाएं पैदा होती हैं । शान्ति केन्द्र प्रेक्षा उसी स्थान को प्रभावित करने का प्रयोग है । प्राचीन भाषा में यह हृदय परिवर्तन का प्रयोग है।
ज्ञान केन्द्र की साधना के द्वारा अन्तर्ज्ञान को विकसित किया जा सकता है । यह अतीन्द्रिय चेतना का विकसित रूप है।
चैतन्य केन्द्र की साधना के साथ लघु मस्तिष्क की प्रेक्षा भी महत्त्वपूर्ण है। यह अतीन्द्रिय चेतना के विकास में बहुत सहयोगी बनता है। समस्या का मूल : समाधान-सूत्र
आज की समस्या का मूल है-चित्त की दुर्बलता, मनोबल की कमी। जब मन की शक्ति कम होती है तब समस्याएं भयंकर बनती चली जाती हैं । जब मन की शक्ति दृढ़ होती है, तब भयंकर समस्या आने पर भी नहीं लगता कि यह कोई समस्या है। बहुत बड़ी समस्या भी छोटी हो जाती है। जब मन का बल टूट जाता है, तब राई भी पहाड़ बन जाती है। समस्या को बड़ा या छोटा नहीं कहा जा सकता । कोई भी समस्या स्वयं में बड़ी नहीं है और कोई भी समस्या स्वयं में छोटी नहीं है । मनोबल अटूट है तो प्रत्येक समस्या छोटी है। मनोबल टूटा हुआ है तो प्रत्येक समस्या बड़ी है । समस्या का छोटा होना या बड़ा होना, भयंकर होना या सरल होना इस बात पर निर्भर है कि मनोबल कम है या अधिक । आदमी समस्या पर ध्यान अधिक केन्द्रित करता है।
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