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अपना दर्पणः अपना बिम्ब सकती है पर सभी मनुष्यों के लिए भी नहीं। ऐसे भोले आदमी भी हैं, जो एक घंटा बाद की बात भी नहीं सोच सकते और एक घंटा पहले क्या किया, यह भी नहीं सोच सकते। न उन्हें कुछ याद रहता है, न कल्पना कर सकते हैं, न योजना बना सकते हैं और न चिन्तन कर सकते हैं । समनस्क होते हुए भी अनेक मनुष्य इस प्रकार के होते हैं। पशुओं की बात ही क्या है? मनोविज्ञान की भाषा
मन का काम है- सोचना, चिन्तन करना । मन और भाव एक नहीं हैं। लेश्या मन नहीं है । भाव हमारी चेतना का गहरा स्तर है, जिसे मनोविज्ञान की भाषा में सबकोशियस कहा जा सकता है। मनोविज्ञान में तीन शब्द हैंकोशियस, सब-कोशियस और अन-कोशियस। अन-कोशियस-अचेतन मन हमारा अध्यवसाय हो सकता है। यहां अचेतन का अर्थ जड़ नहीं है। जहां चेतन मन काम नहीं करता वहां भीतरी चेतना काम करती है और उसी का नाम है अचेतन मन । जैन दर्शन की भाषा
जैन दर्शन की भाषा में कहा जा सकता है-अध्यवसाय हमारी सूक्ष्मतर चेतना है । भाव या लेश्या हमारी सूक्ष्म चेतना का स्तर है और चित्त हमारी स्थूल चेतना है। जो लेश्या का स्तर है, वह होने का, सूक्ष्म चेतना का स्तर है, जहां प्रतिक्षण घटित हो रहा है, भाव का चक्का निरंतर चल रहा है । जब हम नींद में सोते है तब हमारा चेतन-मन काम नहीं करता किन्तु भाव बराबर काम करता रहता है। नींद में भी भावनाएं चल रही हैं, लेश्याएं चल रही हैं। आदमी सोता है, लेश्याएं कभी नहीं सोती, भाव कभी नहीं सोते । भाव मन से काम लेता भी है और नहीं भी लेता । आदमी जागता है तो मन से काम लेता है और सोता है तो मन से काम नहीं लेता । चेतन मन काम करता है तभी हम मन से काम करते हैं । यह चेतना का स्थूल स्तर है।
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