________________
१३८
अपना दर्पणः अपना बिम्ब
जिसे हम कर नहीं रहे है, वह भावना है। भीतर में कुछ ऐसा है कि सब कुछ अपने आप चल रहा है। हमारी कोई चेष्टा नहीं है, प्रयत्न नहीं है किन्तु ऐसी कोई आंतरिक शक्ति और प्रेरणा जागती है, जिससे अपने आप एक क्रम चल रहा है। यह है भावना का स्तर । बाहर से कुछ दिखाई नहीं दे रहा है और भीतर में सब कुछ घटित होता जा रहा है। भीतर जल रही है आग
कबीर का प्रसिद्ध वाक्य हैबाहिर से तो कछु य न दीखे भीतर जल रही जोत।
आग को राख से ढक दिया । बाहर से कुछ नहीं दिख रहा है पर भीतर एक ज्योति जल रही है । इसी प्रकार भाव हमारी चेतना का वह स्तर है, जो बाहर से कुछ नहीं दिखता पर भीतर ही भीतर अपना काम कर रहा है। भीतर में एक आग निरंतर जल रही है। अनेक बार हम कई लोगों से पूछते हैं-तुम यह सब कर रहे हो आखिर इसके पीछे तुम्हारी भावना क्या है? ऐसा प्रश्न अनेक बार पूछा जाता है जो आचरण किया जा रहा है, उसके पीछे भावना क्या है? इसका अर्थ है-करने के नीचे है भावना का स्तर । बंदर का चातुर्य
एक मगरमच्छ ने बंदर से दोस्ती कर ली । आम का मौसम आया। नदी के किनारे आम का एक विशाल पेड़ था। बंदर ने आम तोड़ा और उसे मगरमच्छ के मुंह में डाल दिया । उसे भी आम बड़ा मीठा लगा। मगरमच्छ को आम खाने का चस्का लग गया। एक दिन मगरमच्छ की पत्नी ने पूछा-आजकल तुम देर से क्यों आते हो? क्या बात है? मगरमच्छ ने कहा-नदी के किनारे मेरा एक मित्र रहता है। वह मुझे रोज मीठे मीठे आम खिलाता है। आम इतने मीठे होते हैं कि मैं उन्हें छोड़ नहीं सकता इसीलिए रोज देरी हो जाती है। पत्नी ने कहा - अकेले अकेले ही खा लेते हो, मुझे नहीं खिलाते। पत्नी के मन में दूसरा विकल्प उठा-जो बंदर रोज इतने आम खाता है, उसका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org