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लेश्या : भावधारा
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मांस कितना मधुर होगा? उसने पति से आग्रह किया-मुझे आम नहीं चाहिए। मुझे वह बंदर चाहिए, जो इतने मीठे मीठे आम खाता है। आप उस बंदर को लाएं, मैं उसे खाऊंगी। मुझे बंदर का कलेजा चाहिए । मगरमच्छ ने कहातुम कैसी बात करती हो? वह मेरा मित्र है, मैं उसे कैसे मारूं? मगरमच्छ की पत्नी अपने आग्रह पर अड़ी रही । मगरमच्छ कृतघ्न नहीं था किन्तु पत्नी के दुराग्रह के सामने उसे झुकना पड़ा। उसने सोचा-यदि इसकी भावना पूरी नहीं करूंगा तो घर में कलह होगा, अशांति हो जाएगी । वह दूसरे दिन बंदर से बोला-भैया ! मेरी पत्नी ने तुम्हें बुलाया है? क्या तुम उससे मिलना नहीं चाहोगे? बहुत आग्रह किया है उसने मिलने के लिए । बंदर बोला-मैं पानी में कैसे जा सकता हूं? मगरमच्छ ने उसकी समस्या को समाहित करते हुए कहा - तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मैं तुम्हें ले चलूंगा। मगरमच्छ की बात स्वीकार कर बंदर उसकी पीठ पर बैठ गया। मगरमच्छ बहुत भावुक था। उसने मार्ग में यह बात बता दी-तुम्हारी भाभी ने तुम्हारा कलेजा खाने के लिए तुम्हें बुलाया है। बंदर ने चतुराई से काम लिया। उसने कहा-तुम कैसे मूर्ख हो? हम तो पेड़ों पर इधर-उधर फांदते रहते हैं, कलेजा साथ में नहीं रखते। पहले बताते तो कलेजा साथ ले आता । चलो, वापस चलो, हम कलेजा ले आते हैं। मगरमच्छ वापस किनारे की तरफ चल पड़ा । जैसे ही तट आया, बंदर उछलकर पेड़ पर चढ़ गया ।
मगरमच्छ भावना के स्तर पर था, उसमें चिन्तन नहीं था। ज्योंहि बंदर पेड़ पर चढ़ा, मगरमच्छ उसे देखता रह गया । उसे बंदर का चातुर्य समझ में आ गया । चिन्तन और भावना
__ हर प्राणी भावना के स्तर पर काम करता है । गाय, भैंस, हाथी, घोड़ा-इनमें चिन्तन नहीं होता । इनके पास मन है, पर बहुत छोटा मन है। त्रैकालिकसंज्ञानं मनः- दीर्घकालिकी संज्ञा है मन-मन की यह परिभाषा शायद पशुओं में ज्यादा घटित नहीं होती। यह परिभाषा मनुष्यों के लिए घटित हो
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