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अपना दर्पणः अपना बिम्ब नंदी के इस प्रकरण से एक चिर जिज्ञासित प्रश्न का समाधान होता है। कहा जाता है कि तंत्रशास्त्र और हठयोग में चक्रों का निरूपण है किन्तु जैन साहित्य में उनका कोई निरूपण नहीं है। वास्तव में यह सही नहीं है। अंतगत अवधिज्ञान
नन्दी सूत्र में देशावधि और सर्वावधि का उल्लेख नहीं है किन्तु उनकी व्याख्या बहुत विस्तार से मिलती है। अन्तगत देशावधि का सूचक है और मध्यगत सर्वावधि का सूचक है। अन्तगत अवधिज्ञान के तीन प्रकार हैं
१. पुरतः अन्तगत। २. पृष्ठतः अन्तगत।
३. पार्श्वतः अन्तगत। अंतगत : अर्थ मीमांसा
चूर्णिकार और हरिभद्रसूरि ने अन्तगत शब्द के अनेक अर्थ किए हैं१. यह औदारिक शरीर के पर्यन्त भाग में स्थित होता है, इसलिए अंतगत
२. यह स्पर्धक अवधि होने के कारण आत्म प्रदेशों के अंतभाग में रहता
है इसलिए अन्तगत है। ३. यह औदारिक शरीर के किसी देश (भाग) से साक्षात् जानता है, इसलिए
अन्तगत है।३
१२.
आत्म-गुण का आच्छादन करने वाली कर्म की शक्ति का नाम स्पर्धक है। वह दो प्रकार का होता है-देशघाति और सर्वघाति। आत्मा के किसी एक देश का आच्छादन करने वाली कर्मशक्ति को देशघाति स्पर्धक और सर्व-देश का आच्छादन करने वाली कर्म-शक्ति को सर्वधाति कहा जाता है। नन्दी चूर्णि, पृ० १६ः (क)एवं ओरालियसरीरते ठितं गति एगळं, तं च आतप्पदेसफडगावहि, एगदिसोवलंभाओ य अंतगत मोधिण्णाणं भण्णति । अहवा सव्वातप्पदेसविसुद्धेसु वि ओरालियसरीरेगतेण एगदिसिपासणगतं ति अंतगतं भण्णति। अहवा फुडतरमत्यो भण्णति-एगदिसावधि- उवलद्धखेचातो सो अवधिपुरिसो अंतगतो ति जम्हा तम्हा अंतगतं भण्णति। (ख) नंदी सूत्र, हरिभद्रवृति पृ० २३
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