________________
जैन साहित्य में अतीन्द्रिय चेतना के स्रोत
१२७ हैं। जिसमें जीव-शरीर का एक देश (चैतन्य केन्द्र) करण बनता है, वह एक क्षेत्र अवधिज्ञान है। जो प्रतिनियत क्षेत्र के माध्यम से नहीं होता, किन्तु शरीर के सभी अवयवों के माध्यम से होता है-शरीर के सभी अवयव करण बन जाते हैं, वह अनेक क्षेत्र अवधिज्ञान है।'६
यद्यपि अवधिज्ञान की क्षमता सभी आत्म-प्रदेशों में प्रकट होती है, फिर भी शरीर का जो देश करण बनता है, उसी के माध्यम से अवधिज्ञान प्रकट होता है। शरीर का जो भाग करणस्वरूप में परिणत हो जाता है, वही अवधिज्ञान के प्रकट होने का माध्यम बन सकता है । नंदी सूत्र में भी सब अवयवों से जानने और किसी एक अवयव से जानने की चर्चा मिलती है।२० __एक क्षेत्र अवधिज्ञान में शरीर का एक चैतन्य केन्द्र भी जागृत हो सकता है तथा दो, तीन, चार, पांच आदि चैतन्य केन्द्र भी एक साथ जागृत हो सकते हैं। चैतन्य केन्द्र : संस्थान
चैतन्य केन्द्र अनेक संस्थान वाले होते हैं । जैसे इन्द्रियों का संस्थान प्रतिनियत होता है वैसे चैतन्य केन्द्रों का संस्थान प्रतिनयित नहीं होता, किन्तु करण रूप में परिणत शरीर-प्रदेश अनेक संस्थान वाले होते हैं।२२ कुछ संस्थानों
१८. षड्खंडागम, पुस्तक १३, पृ० २६५
जस्स ओहिणाणस्स जीवसरीरस्स एगदेसो करणं होदि तमोहिणाणमेगक्खेत् णाम । १६. षट्खंडागम, पुस्तक १३, पृ० २६५:
जमोहिणाणं पडिणियदखेतं वज्जिय सरीरसव्वावयवे वट्टदि तमणेयक्खेतं णाम। २०. नन्दी सूत्र २२:
नेरइयदेवतित्थंकरा य, ओहिस्सऽवाहिरा हुति।
पासति सवओ खलु, सेसा देसेण पासति।। २१. षट्खंडागम, पुस्तक १३, पृ० २६७:
ण च एक्कस्स जीवस्स एक्कम्हि चेव पदेसे ओहिणाणकरणं होदिति णियमो अस्थि, एक-दो-तिण्णि-चत्तारि - पंच - छआदि खेचाणमेगजीवम्हि संखादिसुह-संठाणाणं कम्हि
वि संभवादो । २२. वही, पृ० २६६ : खेतदो ताव अणेयसंठाणसठिदा ।।७।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org