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अपना दर्पणः अपना बिम्ब साधना के तारतम्य के अनुसार जो चैतन्य केन्द्र जागृत होता है उसी में से अतीन्द्रिय ज्ञान की रश्मियां बाहर निकलने लग जाती हैं। पूरे शरीर को जागृत कर लिया जाता है तो पूरे शरीर में से अतीन्द्रिय ज्ञान की रश्मियां फूट पड़ती हैं। किसी एक या अनेक चैतन्य केन्द्रों की सक्रियता से होने वाले अविधज्ञान का नाम देशावधि है। पूरे शरीर की सक्रियता से होने वाला अवधिज्ञान सर्वावधि है। अवधिज्ञान के प्रकार
नन्दी सूत्र में अवधिज्ञान के छह प्रकार बतलाए गए हैं१६ १. आनुगामिक
४. हीयमान २. अनानुगामिक
५. प्रतिपाति ३. वर्धमान
६. अप्रतिपाति षट्खंडागम में अवधिज्ञान के तेरह प्रकार बतलाए गए हैं-१७ १. देशावधि
८. अनुगामी २. परमावधि
६. अननुगामी ३. सर्वावधि
१०. प्रतिपाती ४. हीयमान
११. अप्रतिपाती ५. वर्धमान
१२. एक क्षेत्र ६. अवस्थित
१३. अनेक क्षेत्र । ७. अनवस्थित महत्त्वपूर्ण भेद
प्रस्तुत प्रसंग में एक क्षेत्र और अनेक क्षेत्र-ये दो भेद बहुत महत्त्वूपर्ण
१६. नन्दी, सूत्र ६ । १७. षखंडागम, पुस्तक, १३ पृ० २६२ ।
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